ज्ञान-योग | Gyan Yoga
- श्रेणी: ज्ञान विधा / gyan vidhya योग / Yoga
- लेखक: स्वामी विवेकानंद - Swami Vivekanand
- पृष्ठ : 356
- साइज: 5 MB
- वर्ष: 1958
-
-
Share Now:
दो शब्द :
इस पाठ में स्वामी विवेकानंद ने ज्ञानयोग की परिभाषा और महत्व पर विचार किया है। उन्होंने बताया है कि ज्ञान योग साधना का एक महत्वपूर्ण साधन है, जो व्यक्ति को आत्मज्ञान और ब्रह्म के साथ एकत्व की स्थिति में पहुंचाता है। स्वामी विवेकानंद ने माया और ईश्वर के संबंध को समझाया है, जहां माया को जीवन में भ्रम और माया की दृष्टि से देखा गया है। उन्होंने यह भी बताया है कि मनुष्य की वास्तविकता और उसके अस्तित्व का अनुभव करने के लिए आत्मा का ज्ञान आवश्यक है। ज्ञानयोग के माध्यम से व्यक्ति अपने अंदर के सत्य को पहचान सकता है और बाहरी दुनिया के भ्रम से मुक्ति पा सकता है। विवेकानंद ने यह स्पष्ट किया कि ज्ञान का वास्तविक अर्थ केवल पुस्तक ज्ञान नहीं है, बल्कि आत्मा की गहराई में जाकर उसे जानना और समझना है। पाठ में ध्यान और साधना के महत्व पर भी प्रकाश डाला गया है, जिसमें शांति और संतोष की प्राप्ति की बात की गई है। अंततः, स्वामी विवेकानंद ने यह कहा कि ज्ञानयोग के माध्यम से ही व्यक्ति अपने जीवन के उद्देश्य को समझ सकता है और आत्मा की मुक्ति की ओर बढ़ सकता है। इस प्रकार, ज्ञानयोग एक ऐसा मार्ग है जो आत्मा के ज्ञान की ओर ले जाता है और व्यक्ति को उसके वास्तविक स्वरूप से मिलाता है।
Please share your views, complaints, requests, or suggestions in the comment box below.