दो शब्द :

इस पाठ में स्वामी विवेकानंद के शिक्षा संबंधी विचारों का संकलन प्रस्तुत किया गया है। स्वामी विवेकानंद का मानना है कि शिक्षा का मुख्य उद्देश्य मानवता और चरित्र का निर्माण करना है। उन्होंने यह स्पष्ट किया है कि शिक्षा का आधार धर्म होना चाहिए, और इसे समाज में वास्तविकता के रूप में प्रस्तुत किया जाना चाहिए। स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि शिक्षा का अनुभव शिक्षार्थी की आँखों से संसार को देखने से प्राप्त होता है। यदि शिक्षा शिक्षार्थी की आकांक्षाओं के विपरीत होती है, तो यह नुकसानदायक हो सकती है। उन्होंने गलतियों को स्वीकार करने और उनसे सीखने पर जोर दिया। उनका कहना है कि आत्मा स्वभाव से प्रकाशमान है और स्वयं की इच्छाशक्ति से व्यक्ति अपने जीवन को बदल सकता है। धार्मिक शिक्षा को स्वामी विवेकानंद ने शिक्षा का मेरुदंड बताया। उन्होंने महापुरुषों की पूजा और उनके आदर्शों का पालन करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने वर्णन किया कि महावीर हनुमान और श्रीराम के आदर्शों का अनुसरण करना चाहिए, और भक्ति और निष्ठा के साथ जीवन जीने का आह्वान किया। स्वामी विवेकानंद ने आत्मविश्वास को शिक्षा का महत्वपूर्ण तत्व माना और यह कहा कि आत्मविश्वास का विकास ही मानवता का उद्धार करेगा। उन्होंने बल और शक्ति को धर्म का अभिन्न अंग बताया और दुर्बलता को सभी बुराइयों का मूल कारण माना। इस प्रकार, स्वामी विवेकानंद का शिक्षा संबंधी दृष्टिकोण केवल शैक्षणिक ज्ञान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मानवता, चरित्र, धर्म और आत्मविश्वास के विकास पर केंद्रित है।


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