लज्जा | lajja by


दो शब्द :

इस पाठ में सुरंजन नामक एक युवक की मनोदशा का वर्णन है, जो अपने परिवार के साथ सांप्रदायिक तनाव के कारण अपने घर से भागने की स्थिति में है। कहानी में सुरंजन की बहन माया उसे जगाने की कोशिश कर रही है, क्योंकि उसे डर है कि अगर वे समय पर नहीं उठते, तो कोई दुर्घटना घट सकती है। सुरंजन का मन अपने घर से भागने के विचार से भरा हुआ है, वह सोचता है कि उसके नाम और उसके परिवार से जुड़ी पहचान के कारण उसे अपने घर छोड़ना पड़ रहा है, जबकि उसके दोस्त कमाल को ऐसा नहीं करना पड़ता। कहानी में अयोध्या में बाबरी मस्जिद के ध्वंस का संदर्भ दिया गया है, जो साम्प्रदायिक तनाव को जन्म देता है। सुरंजन अपने परिवार के सदस्यों के बारे में सोचता है और महसूस करता है कि वह इस तनावपूर्ण स्थिति में अकेला और असहाय है। वह जानता है कि उसके घर पर हमला हो सकता है और उसे कहीं और शरण लेनी पड़ सकती है। सुरंजन के मन में इस परिस्थिति के प्रति गहरी निराशा और लज्जा है, क्योंकि वह अपने और अपने परिवार के अधिकारों को लेकर असमर्थ महसूस कर रहा है। वह अपने घर को छोड़ने में शर्मिंदगी अनुभव करता है, जबकि उसकी बहन और माता-पिता उसकी मदद के लिए चिंतित हैं। इस प्रकार, यह पाठ सांप्रदायिकता, पहचान और व्यक्तिगत अधिकारों के संघर्ष को उजागर करता है।


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