प्रेम योग | Prem Yoga

By: स्वामी विवेकानंद - Swami Vivekanand
प्रेम योग | Prem Yoga by


दो शब्द :

इस पाठ का सारांश यह है कि भक्ति की गहरी समझ और अभ्यास के लिए भक्त को अपने आहार और जीवनशैली पर ध्यान केंद्रित करना आवश्यक है। भक्तियोग को सर्वोत्तम रूप में समझाने के लिए भक्तों को अपनी आसक्तियों को ईश्वर की ओर मोड़ना चाहिए, जैसे वे इंद्रियों के भोग्य पदार्थों पर करते हैं। भक्ति का वास्तविक अर्थ तब प्रकट होता है जब हम भगवान के प्रति उसी प्रकार की प्रीति और आसक्ति विकसित करते हैं जैसी हम भौतिक वस्तुओं के प्रति रखते हैं। भक्ति का पहला सोपान विवेक है, जो बताता है कि भोजन हमारे शरीर और मन की संरचना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसलिए, भक्त को शुद्ध आहार का सेवन करना चाहिए, जिसमें उत्तेजक और हानिकारक पदार्थों का त्याग शामिल है। इसके अलावा, यह भी आवश्यक है कि भक्त यह सुनिश्चित करें कि भोजन किसके द्वारा तैयार किया गया है, क्योंकि किसी अन्य व्यक्ति की नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव उनके भोजन पर पड़ सकता है। साथ ही, भक्त को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनका आहार स्वच्छ और शुद्ध हो, जिससे मन की शुद्धता बनी रहे। आहार की शुद्धता से मन की शुद्धता और अंततः परमात्मा का निरंतर स्मरण होता है। इस प्रकार, भक्ति केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं है, बल्कि यह एक जीवनशैली का हिस्सा है जो हमें सच्चे प्रेम और समर्पण की ओर ले जाती है। भक्ति का अभ्यास करने के लिए, भक्त को अपने आस-पास के वातावरण, अपने विचारों और अपने आहार का ध्यान रखना चाहिए, ताकि वे ईश्वर के प्रति अपनी आसक्ति को बढ़ा सकें और भक्ति के मार्ग पर आगे बढ़ सकें।


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