ययाति | yyati
- श्रेणी: उपन्यास / Upnyas-Novel जीवनी / Biography साहित्य / Literature
- लेखक: विष्णु सखाराम पाण्डेयकर - Vishnu Sakharam Pandeykar
- पृष्ठ : 357
- साइज: 7 MB
- वर्ष: 1977
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दो शब्द :
इस पाठ में लेखक ने अपने साहित्यिक सफर और उसके विकास का वर्णन किया है। वह पहले विभिन्न साहित्यिक विधाओं में सक्रिय थे, जैसे कविता, समीक्षा, और नाटक, लेकिन उन्हें कहानी लेखन में पहचान मिली। लेखक ने 1616 में अपने लेखन की शुरुआत की और धीरे-धीरे कहानीकार के रूप में पहचान बनाई। उन्होंने बताया कि उनकी रचनाओं का मुख्य विषय समाज की समस्याएं और दुख-दर्द हैं, और उन्होंने अपने लेखन में पौराणिक कथाओं को भी सामाजिक संदर्भ में प्रस्तुत किया। लेखक ने अपने अनुभवों के माध्यम से यह बताया कि 1642 तक भारतीय समाज में राजनीतिक स्वतंत्रता के बावजूद, नैतिक मूल्यों में गिरावट आ गई थी। उन्होंने देखा कि भौतिकism बढ़ रहा था और समाज में रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार, और अन्य सामाजिक बुराइयां फैल रही थीं। इसके परिणामस्वरूप, युवा पीढ़ी ने पारंपरिक मूल्यों को छोड़ना शुरू कर दिया था। लेखक ने ययाति की कथा का उल्लेख करते हुए बताया कि यह कहानी समाज में बढ़ती भौतिकता और लालसा का प्रतीक है। उन्होंने यह भी कहा कि लेखन की प्रक्रिया में विचारों और भावनाओं का एक प्राकृतिक प्रवाह होता है, और जब यह प्रक्रिया शुरू होती है, तो विचार अपने आप आकार लेने लगते हैं। अंत में, लेखक ने अपने लेखन की प्रेरणा और उसके विकास के बारे में गहराई से विचार किया, यह बताते हुए कि किस प्रकार से एक लेखक की कल्पना और अनुभव उसकी रचनाओं को जीवंत बनाते हैं।
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