वेदांत दर्शन | Vedant darshan

By: हरिकृष्णदास गोयन्दका - Harikrishnadas Goyndka


दो शब्द :

यह पाठ महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित ब्रह्मसूत्र की महत्ता और इसके अध्ययन की आवश्यकता को दर्शाता है। ब्रह्मसूत्र एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है जो वेद के चरम सिद्धांतों का निरूपण करता है। इसे वेदांत-दर्शन भी कहा जाता है, क्योंकि यह वेद के उपनिषदों के सूक्ष्म तत्वों का दर्शन कराता है। लेखक ने यह स्वीकार किया कि हिंदी में इस ग्रंथ की सरल व्याख्या की आवश्यकता थी, ताकि आम पाठक इसे समझ सकें। उन्होंने अपने गुरु की प्रेरणा से इस कार्य को करने का निश्चय किया, हालांकि उन्होंने अपनी अयोग्यता को भी स्वीकार किया। इसके बाद, उन्होंने गोरखपुर से ऋषिकेश जाकर इस व्याख्या पर काम शुरू किया और एक महीने के भीतर इसे पूरा किया। लेखक ने संस्कृत भाषा के विभिन्न ग्रंथों का सहारा लेकर इस व्याख्या को तैयार किया। उन्होंने बताया कि ब्रह्मसूत्र की चार अध्यायों में विभाजित है, जिनमें से प्रत्येक अध्याय का अपना विशेष उद्देश्य है। पाठ में यह भी उल्लेख किया गया है कि ब्रह्मसूत्र में वर्णित सिद्धांतों के माध्यम से ब्रह्म और जीव के संबंध, सृष्टि, और मोक्ष की प्राप्ति के उपायों की चर्चा की गई है। लेखक ने पाठकों से अपेक्षा की है कि वे इस ग्रंथ का अध्ययन कर परमात्मा की सच्चाई और साधना के मार्ग को समझें। अंत में, लेखक ने अपनी सीमाओं को स्वीकार करते हुए विद्वानों से निवेदन किया है कि वे किसी भी त्रुटि को इंगित करें, ताकि भविष्य में सुधार किया जा सके। इस प्रकार, पाठ ब्रह्मसूत्र की महत्वता, उसकी व्याख्या की आवश्यकता और अध्ययन के उद्देश्य को स्पष्ट करता है।


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