आयुर्वेदीय औषधिगुणधर्मशास्त्र | Aryuvediya Aaushidhi dharamshastra
- श्रेणी: Ayurveda | आयुर्वेद ज्योतिष / Astrology हिंदी / Hindi
- लेखक: पं. गंगाधर शास्त्री - Pt. Gangadhar Shastri
- पृष्ठ : 162
- साइज: 9 MB
- वर्ष: 1935
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दो शब्द :
इस पाठ का सारांश आयुर्वेदिक चिकित्सा के सिद्धांतों और प्रक्रियाओं पर आधारित है। इसमें आयुर्वेद में चिकित्सा की विधियों, रोग निदान, और औषधियों के गुणधर्मों की चर्चा की गई है। पाठ में बताया गया है कि रोग का निदान केवल लक्षणों के आधार पर नहीं बल्कि रोगी की समग्र स्थिति, विकारों और दोषों के चय, प्रकोप, और प्रसर के आधार पर किया जाना चाहिए। आयुर्वेद में रोग की पहचान के लिए उपार्गुणा पद्धति का उपयोग आवश्यक है, जिसमें रोगी की भावनाओं और लक्षणों का विस्तृत अध्ययन किया जाता है। यह भी स्पष्ट किया गया है कि रोग निदान करने के लिए केवल औजारों पर निर्भर रहना उचित नहीं है, बल्कि चिकित्सक को अपने ज्ञान और अनुभव के आधार पर निर्णय लेना चाहिए। धातुओं और औषधियों के निर्माण के लिए शुद्धि, मारणा, और अखदुतीकरण जैसे संस्कारों का उल्लेख किया गया है। पाठ में यह भी बताया गया है कि विभिन्न धातुओं की भस्म बनाने के लिए विभिन्न प्रक्रियाएँ अपनाई जाती हैं, जिससे उनके गुणों में सुधार होता है। अंत में, आयुर्वेदिक चिकित्सा का उद्देश्य शरीर के दोषों का संतुलन स्थापित करना है ताकि रोग की स्थिति को नियंत्रित किया जा सके। पाठ यह संज्ञान दिलाता है कि आयुर्वेद में रोगों का उपचार केवल बाहरी लक्षणों पर ध्यान देने के बजाय समग्र स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर किया जाता है।
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