सिंदूर की होली | Sindur Ki Holi
- श्रेणी: Crime,Law and Governance | अपराध ,कानून और शासन उपन्यास / Upnyas-Novel नाटक/ Drama हिंदी / Hindi
- लेखक: श्री लक्ष्मीनारायण मिश्र - Shri Lakshminarayan Mishr
- पृष्ठ : 185
- साइज: 11 MB
- वर्ष: 1961
-
-
Share Now:
दो शब्द :
इस पाठ में हिंदी नाटक के विकास और उसके संदर्भ में लक्ष्मीनारायण मिश्र के विचारों को प्रस्तुत किया गया है। लेखक ने यह बताया है कि हिंदी नाटक का आरंभ बाबू हरिशंकर के समय में हुआ था और उस समय के नाटककारों ने देश की धार्मिक, नैतिक और सामाजिक परिस्थितियों पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने नाटकों के माध्यम से समाज में स्वाभिमान, वीरता और धार्मिकता जैसे गुणों को बढ़ावा देने का प्रयास किया। भारतेन्दु युग से लेकर इब्सन के युग तक, नाटक में कई बदलाव आए हैं। इब्सन ने नाटक को केवल मनोरंजन के लिए नहीं, बल्कि वास्तविक जीवन की समस्याओं को प्रस्तुत करने का माध्यम बनाया। उन्होंने पुरानी परंपराओं की आलोचना की और नाटक में सामाजिक मुद्दों को उठाने पर जोर दिया। इब्सन के विचारों ने न केवल यूरोप में बल्कि अन्य देशों में भी नाटककारों को प्रेरित किया, जिससे नाटक की नई धाराएँ विकसित हुईं। लेखक ने यह भी उल्लेख किया है कि पाश्चात्य देशों में नाटकों की इस नई प्रवृत्ति का असर हिंदी साहित्य पर भी पड़ा है। आधुनिक शिक्षित वर्ग ने नाटक में बुद्धिवाद, नैसर्गिकता और स्वतंत्रता को प्राथमिकता दी है। लक्ष्मीनारायण मिश्र का नाटक “सिन्दूर को होली” इसी नई धारणा का उदाहरण है, जिसमें पात्रों का विकास और उनके व्यक्तित्व की गहराई को दर्शाया गया है। इस नाटक में केवल आवश्यक पात्र और घटनाएँ शामिल हैं, जिससे यह स्पष्ट और संगठित है। मिश्र जी का प्रयास सराहनीय है और उनके नाटक में कलात्मकता और विवेक का प्रदर्शन हुआ है। पाठ के अंत में लेखक ने यह संकेत दिया है कि नाटक में कुछ कमियाँ हो सकती हैं, लेकिन यह उनके गुणों के समक्ष नगण्य हैं।
Please share your views, complaints, requests, or suggestions in the comment box below.