धर्मतत्त्व | The essence of religion

By: स्वामी विवेकानंद - Swami Vivekanand


दो शब्द :

पुस्तक "धर्मतत्त्व" में स्वामी विवेकानंद के विचारों को प्रस्तुत किया गया है, जिसमें उन्होंने धर्म के वास्तविक अर्थ और उद्देश्य पर गहन चर्चा की है। स्वामी विवेकानंद का मानना है कि धर्म का अंतिम लक्ष्य आत्मज्ञान या भगवान की प्राप्ति है। उन्होंने यह स्पष्ट किया है कि धार्मिक अनुष्ठान, ग्रंथों और मतमतांतर केवल धर्म के गौण अंग हैं, और असली सारतत्त्व आत्मज्ञान में निहित है। स्वामी विवेकानंद ने धर्म की आवश्यकता को मानवता के संघटन और सामाजिक एकता के लिए महत्वपूर्ण बताया है। उन्होंने विभिन्न धर्मों का अध्ययन करते हुए यह सिद्ध किया है कि सभी धर्म एक ही लक्ष्य की ओर ले जाते हैं। वे इस बात पर जोर देते हैं कि साधक को आत्मज्ञान की ओर बढ़ने के लिए ज्ञान, भक्ति, कर्म और ध्यान जैसे उपायों को अपनाना चाहिए। पुस्तक में यह भी बताया गया है कि धर्म का उद्भव पितृ-पूजा और प्रकृति की पूजा से हुआ है। विद्वानों ने इन दोनों सिद्धांतों पर चर्चा की है, लेकिन स्वामी विवेकानंद ने इसे एक तीसरे सिद्धांत के माध्यम से संयोजित किया है, जिसमें इंद्रियों की सीमाओं को पार करने की मानव की आकांक्षा को महत्व दिया गया है। स्वामी विवेकानंद के विचारों के अनुसार, मानवता का उद्देश्य आत्मज्ञान प्राप्त करना है और जब व्यक्ति अपने धर्म के अनुसार सच्ची आंतरिकता से धर्म का पालन करेगा, तो सभी धार्मिक और सांप्रदायिक बुराइयाँ समाप्त हो जाएँगी। इस प्रकार, पुस्तक पाठकों को यह सिखाती है कि वास्तविक धर्म का अनुसरण करके ही वे अपने जीवन में शांति और संतोष प्राप्त कर सकते हैं।


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