कुलक्षेत्र | Kulshetra by


दो शब्द :

इस पाठ में 'कुरुक्षेत्र' नामक पुस्तक के प्रकाशन और उसकी रचना के संदर्भ में जानकारी दी गई है। लेखक, रामधारी सिंह दिनकर, बताते हैं कि पहले 'कुरुक्षेत्र' का प्रकाशन उदयाचल से होता था, लेकिन अब उन्होंने राजपाल एण्ड संस के माध्यम से नए संस्करण का प्रकाशन किया है। उन्होंने इस नए संस्करण में कुछ गलतियों को सुधारने के साथ-साथ पाठकों और शिक्षकों के लिए महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ भी जोड़ी हैं। लेखक स्पष्ट करते हैं कि 'कुरुक्षेत्र' की रचना भगवान व्यास के महाभारत के पुनरावृत्ति के उद्देश्य से नहीं की गई है। उन्होंने युधिष्ठिर और भीष्म के संवादों के माध्यम से युद्ध की जटिलताओं और मानवीय समस्याओं पर ध्यान केंद्रित किया है। दिनकर ने यह महसूस किया कि युद्ध मानवता की समस्त समस्याओं की जड़ है। उन्होंने यह भी कहा कि युद्ध के परिणामस्वरूप जो पीड़ा और हानि होती है, उसका सही मूल्यांकन किया जाना चाहिए। उन्होंने युधिष्ठिर और भीष्म के बीच संवादों के माध्यम से यह दर्शाने की कोशिश की है कि युद्ध की जीत भी असल में हार हो सकती है। लेखक ने यह भी उल्लेख किया है कि उनकी रचना एक साधारण मनुष्य का शंकाकूल हृदय है, और यह दर्शन या ज्ञान का चमत्कार नहीं है। उन्होंने पाठकों को यह बताने का प्रयास किया है कि 'कुरुक्षेत्र' केवल एक कविता नहीं, बल्कि विचारों और चिंताओं का संग्रह है, जो मानवता की स्थिति को दर्शाता है। इस प्रकार, 'कुरुक्षेत्र' एक गहन विचारशील काव्य है जो युद्ध के नैतिकता, मानवीय भावनाओं और सामाजिक समस्याओं को उजागर करता है।


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