पातंजल योग दर्शनम | Patanjal Yog Darshanam
- श्रेणी: धार्मिक / Religious योग / Yoga
- लेखक: ब्रह्मलिमुनि महाराज - Brahmlimuni Maharaj
- पृष्ठ : 921
- साइज: 16 MB
- वर्ष: 1958
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दो शब्द :
इस पाठ में लेखक ने योगदर्शन पर एक विस्तृत व्याख्या प्रस्तुत की है। उन्होंने इस विषय पर लिखने का निर्णय लिया क्योंकि योग उनके लिए अत्यंत प्रिय है। लेखक का लक्ष्य योगदर्शन के सूत्रों और उनके अर्थों की स्पष्टता लाना है, ताकि पाठक आसानी से समझ सकें। उन्होंने अपनी कृति को 'योगमाप्यविवृति' नाम दिया है और यह उल्लेख किया है कि योगदर्शन की विभिन्न व्याख्याएँ अक्सर कठिन होती हैं, जिससे पाठकों को समझने में कठिनाई होती है। लेखक ने यह भी बताया है कि उन्होंने स्वयं योगदर्शन का अध्ययन किया है और स्वामी श्रीवालराम जी की व्याख्या को पसंद किया। उन्होंने अपनी व्याख्या में वही सामग्री शामिल की है जो अन्य विद्वानों ने प्रस्तुत की है, लेकिन उन्होंने इसे सरल और स्पष्ट रूप में लिखा है। लेखक का यह प्रयास है कि यह व्याख्या विद्यार्थियों के लिए उपयोगी साबित हो। इसके अलावा, लेखक ने अपनी मेहनत और समय के बारे में बताया कि कैसे उन्होंने एक वर्ष में इस व्याख्या को पूरा किया। उन्होंने कई विद्वानों का आभार व्यक्त किया है जिन्होंने इस कार्य में उनका समर्थन किया। अंत में, लेखक ने यह भी स्वीकार किया कि उनकी लिखाई में कुछ अशुद्धियाँ हो सकती हैं और पाठकों से अपेक्षा की है कि वे उन्हें सुधारें। इस प्रकार, पाठ का सारांश योगदर्शन के महत्व, उसकी व्याख्या के उद्देश्य और लेखक के प्रयासों को उजागर करता है।
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