श्रीमद्भगवद्गीता | Shreemad Bhagwat Geeta

By: हरिकृष्णदास गोयन्दका - Harikrishnadas Goyndka


दो शब्द :

इस पाठ में श्रीमद्भगवद्गीता के श्रीरामानुजाचार्य के भाष्य का सारांश प्रस्तुत किया गया है। आचार्य ने गीता के विभिन्न अध्यायों में अद्वैतवाद, भेदवाद और कर्मयोग की व्याख्या की है। उन्होंने बताया है कि आत्मज्ञान प्राप्त करने के लिए भक्तियोग और कर्मयोग दोनों आवश्यक हैं। आचार्य ने गीता में वर्णित सिद्धांतों को स्पष्ट करते हुए कर्मों का त्याग नहीं करने की बात की है, क्योंकि मनुष्य को अपने स्वभाव के अनुसार कर्म करना आवश्यक है। आचार्य ने बताया कि आत्मचिन्तन और ज्ञान प्राप्ति के लिए कठिनाइयाँ हैं, लेकिन ज्ञानयोग और कर्मयोग दोनों ही आत्मा के सत्य स्वरूप को जानने में सहायक होते हैं। उन्होंने गीता के विभिन्न श्लोकों का संदर्भ देते हुए कर्मों की प्रकृति और उनके उद्देश्य को स्पष्ट किया। आचार्य का यह भाष्य गीता के भक्तिपूर्ण अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण है और इसके माध्यम से पाठक गीता के गहरे अर्थों को समझ सकते हैं। पाठ में अनुवादक ने यह भी बताया है कि उन्होंने सरल हिंदी में आचार्य का भाव प्रस्तुत करने का प्रयास किया है, ताकि गीता प्रेमी इसे आसानी से समझ सकें। इस पाठ के अंत में अनुवादक ने अपने कार्य की कठिनाइयों का उल्लेख किया है और विद्वानों से सुझाव देने की अपील की है ताकि भविष्य में इसे और बेहतर बनाया जा सके।


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