बृहद अनुवाद चन्द्रिका | Brihad Anuvad Chandrika

By: शास्त्री चक्रधर नौटिय - Shastri Chakradhar Nautiya


दो शब्द :

इस पाठ में संस्कृत व्याकरण और इसकी विशेषताओं पर चर्चा की गई है। इसमें महर्षि पाणिनि द्वारा रचित व्याकरण की महत्ता और उसके अद्वितीय गुणों का वर्णन किया गया है। पाणिनि ने लगभग 500 वर्ष ईसा पूर्व एक सुसंगठित और स्पष्ट व्याकरण की रचना की, जिसमें चार हजार सूत्र शामिल हैं। उनके व्याकरण की शैली में गहराई और प्रणाली है, जो अन्य भाषाओं की तुलना में अद्वितीय है। पाठ में व्याकरण के विभिन्न पहलुओं का विवरण किया गया है, जैसे प्रत्याहार, अनुबंध, गणपाठ, और संज्ञाएँ। यह भी बताया गया है कि पाणिनि ने शब्दों को समझने के लिए विभिन्न विधियाँ अपनाई हैं, जैसे ग्रत्याहर और सशाएँ। इसके अतिरिक्त, पाठ में व्याकरण की कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाएँ और नियम भी प्रस्तुत किए गए हैं, जैसे गुण, वृद्धि, उपधा, सम्प्रसारण, और प्रातिपदिक। लेखक ने यह भी उल्लेख किया है कि आधुनिक संदर्भ में विद्वानों द्वारा पाणिनि की प्रणाली की प्रशंसा की जा रही है। पाठ का निष्कर्ष इस बात पर जोर देता है कि भारतीय व्याकरण का अध्ययन और अनुसंधान आज भी प्रासंगिक है और इसका ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक है। लेखक ने इस पुस्तक के अनुवाद और संपादन के पीछे के उद्देश्यों को भी स्पष्ट किया है, जिससे यह समझ में आता है कि यह कार्य विद्या के प्रचार-प्रसार के लिए किया गया है।


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