अहंकार | Ahankar

By: प्रेमचंद - Premchand
अहंकार  | Ahankar by


दो शब्द :

पाठ "अहंकार" का सारांश इस प्रकार है: यह पाठ ईसाई धर्म और उसके अनुयायियों की धार्मिकता, अहंकार, और सामाजिक स्थितियों का चित्रण करता है। लेखक ने फ्रेंच साहित्य के प्रमुख उपन्यास "थायस" का संदर्भ देते हुए बताया है कि यह रचना प्राचीन ईसाई समाज की जटिलताओं और अंतर्द्वंद्वों को उजागर करती है। पाठ में यह बताया गया है कि ईसाई धर्म के अनुयायी कैसे विभिन्न आस्थाओं में विभाजित थे और उनकी धार्मिकता के पीछे कितनी जटिलताएँ थीं। लेखक ने एक तपस्वी का जीवन, उसके अहंकार और अंततः उसके पतन की कहानी को प्रस्तुत किया है। इस तपस्वी का अहंकार उसे स्वार्थी और असहिष्णु बना देता है, जिससे उसकी धार्मिकता में कमी आती है। पाठ में थायस नाम की एक महिला का भी जिक्र है, जो साधारण परिवार से आती है और अपने जीवन में प्रेम और भक्ति की खोज में जुटी रहती है। वह अपने प्रेमियों के साथ भौतिक सुखों की तलाश में है, परंतु उसके अंदर आध्यात्मिक ज्ञान की इच्छा भी है। कहानी में अहंकार का यह संदेश है कि व्यक्ति का आत्म-गौरव और धार्मिकता एक सीमित दायरे में रह सकती है, और जब यह अहंकार बढ़ता है, तो व्यक्ति का पतन निश्चित होता है। पाठ अंत में यह संकेत करता है कि भौतिक सुखों की तलाश में व्यक्ति आध्यात्मिकता को भुला देता है, जिससे उसकी अंतर्दृष्टि और विवेक में कमी आती है। इस प्रकार, "अहंकार" पाठ में लेखक ने धार्मिकता, अहंकार, और समाज के विभिन्न पहलुओं का गहन विश्लेषण किया है, जो आज भी प्रासंगिक है।


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