श्रीमद भगवद गीता रहस्य अथवा कर्मयोग-शास्त्र | Srimad Bhagavad Gita Rahasya Athava Karmayoga-shastra

By: बाल गंगाधर तिलक - Bal Gangadhar Tilak


दो शब्द :

यह पाठ लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक द्वारा लिखी गई "गीतारहस्य" नामक ग्रंथ के बारे में है, जिसमें उन्होंने श्रीमद्भगवद्गीता की गहराई और उसके महत्व को उजागर किया है। तिलक ने यह ग्रंथ अपने कैद के समय में लिखा, जो भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता का महत्वपूर्ण हिस्सा है। उन्होंने गीता के संदेश को न केवल दार्शनिक दृष्टिकोण से, बल्कि आचार और विचार के संदर्भ में भी प्रस्तुत किया है। लेखक ने गीता को एक जीवंत ग्रंथ बताया, जो हर युग में प्रासंगिक है और जिसका संदेश मानव जीवन, श्रम, और कर्म की महिमा को उजागर करता है। तिलक की यह व्याख्या गीता के गहन तत्त्वज्ञान को सरल और सुसंगत तरीके से प्रस्तुत करती है, जिससे यह ग्रंथ मराठी साहित्य का एक अभिजात हिस्सा बन गया है। पाठ में यह भी उल्लेख किया गया है कि तिलक का योगदान न केवल गीता के अध्ययन में, बल्कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी महत्वपूर्ण था। उनके विचारों और लेखन ने न केवल उनके समकालीनों को प्रेरित किया, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी एक मार्गदर्शक का कार्य किया। महात्मा गांधी ने भी तिलक की गीता पर टीका को अत्यंत महत्वपूर्ण बताया और इसे उनके शाश्वत स्मारक के रूप में वर्णित किया। अंत में, यह पाठ तिलक के ज्ञान और उनके द्वारा किए गए अनुसंधान को सराहता है, और यह बताता है कि गीता का संदेश आज भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि प्राचीन काल में था।


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