मेरी समार नीति | Merii Samar Niiti
- श्रेणी: Hindu Scriptures | हिंदू धर्मग्रंथ Speech and Updesh | भाषण और उपदेश ज्योतिष / Astrology धार्मिक / Religious
- लेखक: श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' - Shri Suryakant Tripathi 'Nirala' स्वामी विवेकानंद - Swami Vivekanand
- पृष्ठ : 52
- साइज: 4 MB
- वर्ष: 1948
-
-
Share Now:
दो शब्द :
इस पाठ में स्वामी विवेकानन्द के विचारों और उनके भाषण का सार प्रस्तुत किया गया है। स्वामी विवेकानन्द ने मद्रास के विक्टोरिया हॉल में एक व्याख्यान दिया, जिसमें उन्होंने भारत की संस्कृति, स्वतंत्रता, और आत्म-सम्मान के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने अपने अनुभवों को साझा करते हुए यह कहा कि उन्होंने पाश्चात्य देशों में भारत का संदेश फैलाने का प्रयास किया और वहाँ अपने कार्यों में कई बाधाओं का सामना किया। स्वामी विवेकानन्द ने थियासोफिकल सोसायटी का उल्लेख किया और उसकी सकारात्मकता के लिए श्रीमती वेसेंट का आभार व्यक्त किया, लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि किसी भी संगठन की बातों को बिना विचार किए मान लेना उचित नहीं है। उन्होंने उन लोगों की आलोचना की, जो भारत के सुधारों में बाधा डालने की कोशिश कर रहे थे। स्वामीजी ने अपने अनुभवों से सीखा कि जब कोई व्यक्ति किसी विषय पर भिन्न विचार रखता है, तो सहानुभूति खो जाती है। उन्होंने अमेरिका में अपने कार्यों के दौरान कई तरह की नकारात्मकता और आलोचनाओं का सामना किया, जिसमें कुछ भारतीयों का भी योगदान था। वे अपने अनुभवों को साझा करते हुए यह संदेश देते हैं कि भारतीय संस्कृति और धर्म को समझने और अपनाने में ही सच्ची प्रगति है। उन्होंने अपने जीवन के उद्देश्य को अपने धर्म और मातृभूमि की सेवा में अर्पित करने की इच्छा प्रकट की। इस भाषण में स्वामी विवेकानन्द की दृढ़ता, साहस, और अपने देश के प्रति समर्पण की भावना स्पष्ट रूप से दिखाई देती है, जो उन्हें एक प्रेरणादायक नेता बनाती है।
Please share your views, complaints, requests, or suggestions in the comment box below.