बच्चो के सौ नाटक | Baccho ke 100 Natak

By: हरिकृष्ण देवसरे - Harikrashn Devsare


दो शब्द :

इस पाठ में बच्चों के लिए दो नाटकों का वर्णन किया गया है। पहले नाटक में, एक बालक जंगल में खेलते हुए एक सिंह के बच्चे को पकड़ता है, जिस पर तपस्विनियों का ध्यान जाता है। तपस्विनियाँ उस बालक को समझाती हैं कि उसे जानवरों को नहीं सताना चाहिए। बालक कहता है कि वह उसे छोड़ नहीं देगा, तब तपस्विनियाँ उसे एक सुंदर खिलौना देने का प्रस्ताव करती हैं। अंत में, वह बालक सिंह के बच्चे को छोड़ देता है और खेलता है। दूसरे नाटक का शीर्षक "अंधेर नगरी" है, जिसमें एक महंत और उसके चेले एक नगर में जाते हैं। वहां उन्हें पता चलता है कि नगर का नाम "अंधेर नगरी" है और राजा का नाम "चोपट्ट राजा" है। नगर में सब चीजें बेहद सस्ती हैं। नाटक में एक फरियादी अपनी बकरी के लिए न्याय मांगता है, जो एक गिरती हुई दीवार के नीचे दब गई थी। राजा ने मामले की सुनवाई की, जिसमें कारीगर, चने वाला, भिश्ती और कसाई सभी को दोषी ठहराया गया। अंत में, सभी आरोप एक दूसरे पर डालते हैं, जिससे यह साबित होता है कि वहाँ किसी का भी दोष नहीं था और यह सब एक श्रृंखला में चलता रहता है, जो हास्य और व्यंग्य के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इस प्रकार, दोनों नाटक बच्चों के मनोरंजन के साथ-साथ नैतिक शिक्षा भी देते हैं।


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