यशपाल और उनकी दिव्या | Yashpal Aur Unaki Divya

By: प्रौ० भूषण स्वामी - Pro. Bhushan Swami


दो शब्द :

यशपाल एक क्रांतिकारी लेखक हैं, जिनका उपन्यास 'दिव्या' हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह पुस्तक छात्रों के लिए लिखी गई है और इसमें 'दिव्या' के विषय में प्रश्न-उत्तर के माध्यम से जानकारी दी गई है। इस पुस्तक में यशपाल के जीवन, उनके कार्यों, 'दिव्या' की संक्षिप्त सामग्री, प्रमुख पात्रों का चरित्र-चित्रण, और उपन्यास की भाषा पर चर्चा की गई है। यशपाल का जन्म 1903 में फिरोजपुर में हुआ था। उनकी माता प्रेमवती शिक्षिका थीं और पिता हीराताल एक सरकारी कर्मचारी थे। यशपाल का शिक्षा जीवन क्रांतिकारी गतिविधियों के साथ जुड़ा रहा और उन्होंने कई बार जेल भी काटी। उन्होंने 'दिव्या' में बौद्धिकता, सामाजिक मुद्दों और नारी की स्थिति पर ध्यान केंद्रित किया है। 'दिव्या' की भाषा अत्यधिक प्रभावशाली है और इसमें गहरी भावनाएं और चित्रण हैं। यशपाल ने इसे साधारण लेकिन प्रभावी तरीके से लिखा है, जिससे पात्रों की भावनाएं और संवाद जीवंत हो उठते हैं। उपन्यास में नारी के संघर्ष और सामाजिक मुद्दों को प्रमुखता से रखा गया है, जिससे यह न केवल एक साहित्यिक कृति बल्कि एक सामाजिक दस्तावेज भी बन जाता है। यशपाल के लेखन में विचारधारा का स्पष्ट प्रभाव है, जिसमें वे समाज के प्रति अपने दायित्वों का बोध कराते हैं। 'दिव्या' केवल एक उपन्यास नहीं, बल्कि उस समय के समाज का एक दर्पण है, जो यशपाल की संवेदनशीलता और दृष्टिकोण को दर्शाता है।


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