खड़ी बोली का लोकसाहित्य | Khadi Boli Ka Loksahitya

By: डाॅ सत्या गुप्त - Dr Satya Gupt


दो शब्द :

यह पाठ डॉक्टर सत्या गुप्त के शोध-प्रस्ताव "खड़ीबोली का लोक-साहित्य" पर आधारित है, जिसमें खड़ीबोली के लोक-साहित्य का विस्तृत अध्ययन किया गया है। यह शोध कार्य प्रयाग विश्वविद्यालय से डी. फिल. की उपाधि प्राप्त करने के लिए लिखा गया है। लेखिका ने खड़ीबोली भाषा और उसके लोक-साहित्य के विभिन्न पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया है, जिसमें लोकगीत, लोककथा, लोकगाथा, और लोकोक्तियाँ शामिल हैं। पुस्तक के प्रकाशन के लिए लेखिका को बधाई दी गई है और इसे खड़ीबोली के अध्ययन में एक महत्वपूर्ण कदम माना गया है। खड़ीबोली, जो कौरवी बोली के रूप में भी जानी जाती है, हिंदी साहित्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह अध्ययन खड़ीबोली प्रदेश की संस्कृति, समाज और भाषा की गहराई से जानकारी प्रदान करता है। पाठ में बताया गया है कि खड़ीबोली प्रदेश में सांस्कृतिक जागरण की प्रक्रिया चल रही है और इसे हिंदी साहित्य में अब अधिक महत्व दिया जा रहा है। लेखिका ने इस क्षेत्र के लोक-साहित्य को संकलित और संरक्षित करने का कार्य किया है, जो कि इस जनपद की सांस्कृतिक धरोहर को उजागर करता है। इसके अलावा, पाठ में यह भी उल्लेखित है कि खड़ीबोली प्रदेश में कई महत्वपूर्ण सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियाँ होती हैं, जैसे कि विवाह संस्कार और अन्य त्योहार, जो इसके लोक-साहित्य का अभिन्न हिस्सा हैं। लेखिका की उम्मीद है कि इस अध्ययन का मूल सामग्री शीघ्र ही स्वतंत्र पुस्तकों के रूप में प्रकाशित होगी। इस प्रकार, यह पाठ खड़ीबोली के लोक-साहित्य का महत्व और उसके अध्ययन की आवश्यकता को रेखांकित करता है, जो भारतीय संस्कृति और भाषा की विविधता को दर्शाता है।


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