दो शब्द :

इस ग्रंथ में कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स की उन रचनाओं को संकलित किया गया है, जिनमें उन्होंने धर्म की प्रकृति, उसकी उत्पत्ति और समाज में उसकी भूमिका पर अपने विचार प्रस्तुत किए हैं। यह रचनाएं सर्वहारा वर्ग के लिए मार्क्सवादी अनीश्वरवाद के सिद्धांत की बुनियाद हैं। मार्क्स और एंगेल्स ने जो विश्वदृष्टि स्थापित की है, वह प्रकृति और समाज के वस्तुगत नियमों पर आधारित है और विज्ञान द्वारा प्रस्तुत तथ्यों पर निर्भर करती है, जबकि यह धर्म के विरोध में है। मार्क्स ने अपनी थीसिस में स्पष्ट किया कि एपीक्यूरस के भौतिकवादी दर्शन का धर्म के साथ कोई मेल नहीं हो सकता। उन्होंने धर्म और भौतिकवाद के बीच के संबंध को समझाया है और दिखाया है कि कैसे भौतिकवादी दर्शन और प्राकृतिक विज्ञान की उपलब्धियों ने अनीश्वरवाद को प्रेरित किया है। मार्क्स और एंगेल्स ने यह भी बताया है कि जब पूंजीपति वर्ग ने अपना प्रभुत्व स्थापित किया, तो उसने धर्म का इस्तेमाल आम जनता के लिए एक अफीम के रूप में करना शुरू कर दिया। उन्होंने यह सिद्ध किया कि धर्म असल में मनुष्यों की समस्याओं का काल्पनिक प्रतिबिम्ब है, जो उनकी दैनिक जिंदगी को नियंत्रित करता है। इस ग्रंथ में धर्म के सामाजिक और ऐतिहासिक संदर्भ को भी स्पष्ट किया गया है, यह दर्शाते हुए कि कैसे धर्म ने वैज्ञानिक विचारों के विकास को दबाया है। मार्क्सवादी दृष्टिकोण के अनुसार, धर्म का अंत तब संभव है जब समाज की आर्थिक और राजनीतिक परिस्थितियाँ बदल जाएँगी। श्रमिक वर्ग अपने श्रम के माध्यम से अपने धार्मिक विचारों और अंधविश्वासों से मुक्त हो जाएगा। इस प्रक्रिया में भौतिकवादी दर्शन महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अंत में, यह ग्रंथ मार्क्सवाद के सिद्धांतों को प्रस्तुत करता है, जो धर्म के खिलाफ वैज्ञानिक और भौतिकवादी दृष्टिकोण को बढ़ावा देता है, और यह बताता है कि धार्मिक विचारों को समाप्त करने के लिए केवल सामाजिक और राजनीतिक बदलाव ही पर्याप्त नहीं हैं, बल्कि इसके लिए वैज्ञानिक अनीश्वरवादी प्रचार की आवश्यकता भी है।


Please share your views, complaints, requests, or suggestions in the comment box below.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *