सुश्रुत संहिता शरीरस्थानम | Sushruta Samhita Sharirsthanam

By: भास्कर गोविन्द घाणेकर - Bhaskar Govind Ghanekar
सुश्रुत संहिता शरीरस्थानम | Sushruta Samhita Sharirsthanam by


दो शब्द :

इस पाठ में लेखक ने आयुर्वेद के एक महत्वपूर्ण ग्रंथ "सुश्रुत संहिता" के शरीरस्थान या "शारीरस्थान" पर चर्चा की है। लेख में यह बताया गया है कि यह ग्रंथ प्राचीन काल में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता था, और इसके अध्ययन के लिए कई आयुर्वेद प्रेमियों ने प्रशंसा की है। लेखक ने पहले भाग की तुलना में इस भाग में अधिक विस्तृत और गहन विषयों पर ध्यान केंद्रित किया है। लेखक ने यह भी उल्लेख किया है कि पूर्व में शारीरविज्ञान को उच्च मान्यता प्राप्त थी, जबकि वर्तमान में पश्चिमी चिकित्सा पद्धतियों के साथ तुलना करने पर इसकी प्रासंगिकता पर प्रश्न उठाए जा रहे हैं। लेख में यह बताया गया है कि कैसे विभिन्न आचार्य और विद्वान इस विषय में अपने विचार प्रस्तुत कर चुके हैं और किस प्रकार विवादास्पद मुद्दों पर विभिन्न मतों का सामना करना पड़ा है। लेखक ने यह स्वीकार किया है कि इस विषय को समझना कठिन है, लेकिन उन्होंने इसे सरल बनाने का प्रयास किया है। उन्होंने पाठकों से अपील की है कि वे उनके विचारों का ध्यानपूर्वक अध्ययन करें और किसी भी त्रुटि के लिए क्षमा करें। अंत में, लेखक ने इस कार्य को प्रस्तुत करने के लिए अपनी इच्छा व्यक्त की है कि यह पाठक समुदाय के लिए उपयोगी साबित हो।


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