किरातार्जुनीय महाकाव्य | Kiratarjuniya Mahakavya
- श्रेणी: ज्योतिष / Astrology धार्मिक / Religious महकाव्य / mahakavya
- लेखक: श्री रामप्रताप त्रिपाठी - Shree Rampratap Tripathi
- पृष्ठ : 504
- साइज: 7 MB
- वर्ष: 1971
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दो शब्द :
किरातार्जुनीय महाकाव्य सहाकवि भारवि द्वारा रचित एक अद्वितीय काव्य है, जिसे संस्कृत साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। इसे महाकाव्यों की 'बृहत्त्रयी' में पहला स्थान दिया गया है। यह काव्य कालिदास की रचनाओं के बाद का है और इसकी काव्य कला की विशेषताएँ इसे अन्य महाकाव्यों से अलग बनाती हैं। भारवि ने इस काव्य में गूढ़ भाव, लयबद्धता और काव्य के शास्त्रीय लक्षणों का समावेश किया है, जिससे यह अत्यंत प्रभावशाली बन गया है। कविता की संरचना में सरलता और मनोहारी ध्वनि है, जिसने इसे पाठकों के बीच लोकप्रिय बनाया है। भारवि की रचनाएँ अर्थ-गौरव और शब्द-सौंदर्य से परिपूर्ण हैं, जिनमें उन्होंने नैतिकता और सदाचरण के आदर्शों को प्रमुखता से प्रस्तुत किया है। किरातार्जुनीय का मुख्य विषय अर्जुन की तपस्या और उसकी वीरता है, जिसमें भगवान शिव का किरात रूप में प्रकट होना और अर्जुन से संवाद महत्वपूर्ण हैं। कविता में विभिन्न सर्गों के माध्यम से अर्जुन की तपस्या और अप्सराओं की परीक्षा का वर्णन किया गया है। इसमें वीर रस का प्रभाव प्रमुख है और कवि ने इसको विभिन्न छंदों में प्रस्तुत किया है, जिसमें वशस्थ और मालिनी छंद विशेष रूप से प्रयुक्त हुए हैं। इस महाकाव्य में कवि ने नैतिकता, राजनीति और युद्ध की भावना को भी उजागर किया है, जो इसे और भी रोचक बनाती है। कुल मिलाकर, किरातार्जुनीय महाकाव्य केवल एक काव्य रचना नहीं है, बल्कि यह जीवन के गूढ़ अर्थों, नैतिकता और वीरता का प्रतीक है, जो पाठकों को एक अद्वितीय अनुभव प्रदान करता है।
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