बृहन्निघंटुरत्नाकार | BrhannighuntRatnakar

By: श्री दत्तराम श्रीकृष्ण माथुर - Shree Duttram Shree Krishan Mathur


दो शब्द :

इस पाठ का सारांश यह है कि यह एक पुस्तक का प्रस्तावना है, जिसका शीर्षक "बहन्निघंट्रत्नाकर" है और इसे आयुर्वेद के विषय में सरल और सुलभ भाषा में लिखने का उद्देश्य रखा गया है। पुस्तक का मुख्य उद्देश्य है कि आम जन को आयुर्वेद का ज्ञान आसानी से उपलब्ध कराया जाए, ताकि वे अपने स्वास्थ्य का ध्यान रख सकें और विभिन्न रोगों का उपचार कर सकें। इसमें यह बताया गया है कि शरीर का रक्षण और स्वास्थ्य को बनाए रखना महत्वपूर्ण है, क्योंकि यही चार पुरुषार्थों (धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष) की प्राप्ति का साधन है। लेखक ने यह भी उल्लेख किया है कि आयुर्वेद के ग्रंथ कठिन हैं, और इसलिए आम लोगों के लिए एक ऐसा ग्रंथ तैयार करने की आवश्यकता थी, जिसमें सभी महत्वपूर्ण जानकारी संक्षेप में उपलब्ध हो। इस ग्रंथ में विभिन्न अध्यायों का समावेश किया गया है, जो शरीर के विभिन्न अंगों, रोगों, चिकित्सा विधियों, औषधियों आदि से संबंधित हैं। लेखक ने आयुर्वेद के महत्व को उजागर किया है और कहा है कि यह विद्या भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। उन्होंने यह भी उल्लेख किया है कि भारत में वैद्य और चिकित्सा पद्धतियों की मान्यता में कमी आई है, जिसके कारण लोग आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों पर अधिक निर्भर हो गए हैं। आखिर में, लेखक ने पाठकों से आग्रह किया है कि वे इस ग्रंथ का अध्ययन करें और अपने स्वास्थ्य की रक्षा के लिए आयुर्वेद के ज्ञान का उपयोग करें।


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