परीक्षा गुरु | Pariksha Guru

By: लाला श्री निवासदास - Lala Shree Niwasdas


दो शब्द :

लाला श्रीनिवासदास का जन्म 1801 ई. में हुआ था। वे एक प्रतिष्ठित परिवार से थे और उनके पिता मंगलीलाल जी मथुरा के जाने-माने सेठ के प्रधान मुनीब थे। श्रीनिवासदास बचपन से ही प्रतिभाशाली और विद्या के प्रति उत्सुक थे। उन्होंने विभिन्न भाषाओं में कौशल हासिल किया और महाजनी कारोबार में अठारह वर्ष की आयु में ही दक्षता प्राप्त कर ली। उनकी योग्यता को देखते हुए पंजाब सरकार ने उन्हें म्युनिसिपल कमिश्नर और आनरेरी मजिस्ट्रेट की पदवी दी। श्रीनिवासदास को मातृभाषा हिंदी से विशेष प्रेम था। वे हमेशा हिंदी के लेखकों और साहित्यकारों से मिलते और उनका सत्कार करते थे। उन्होंने कई नाटक और साहित्यिक रचनाएँ लिखीं, जैसे 'परीक्षागुरु', 'तप्तासंवरण', 'संयोगितास्वयंवर', और 'रणधीरप्रेममोहिनी', जो उनकी गहरी सोच और अनुभव को दर्शाते हैं। हालांकि, वे केवल 36 वर्ष की आयु में 1887 में निधन हो गए। इस पाठ में लाला श्रीनिवासदास के जीवन के विभिन्न पहलुओं का वर्णन किया गया है, जिसमें उनकी शिक्षा, भाषा के प्रति प्रेम, लेखन और व्यवसाय में दक्षता शामिल हैं। उनका योगदान हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण माना जाता है, और उन्होंने अपने जीवन के छोटे से हिस्से में ही अद्वितीय कार्य किए।


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