काश्यपसंहिता | Kashyapasanhita

By: महर्षि कश्यप - Maharishi Kashyap


दो शब्द :

इस पाठ का सारांश इस प्रकार है: पाठ में लेखक ने अपने संशोधन कार्य की योजना और उसके संचालन में सहायता के लिए विभिन्न व्यक्तियों और संस्थाओं का आभार व्यक्त किया है। उन्होंने ज्योतिष शास्त्र पर अध्ययन और शोध कार्य में अपने मार्गदर्शकों, विशेषकर प्रो. डॉ. मुकुंद वाडेकर का उल्लेख किया है, जिन्होंने उन्हें मार्गदर्शन और सहयोग प्रदान किया। लेखक ने प्राच्य विद्या और ज्योतिष शास्त्र के महत्व को भी रेखांकित किया है और इसे भारतीय संस्कृति का एक अनिवार्य हिस्सा माना है। लेखक ने ज्योतिष शास्त्र की व्याख्या, उपयोगिता और इसके ऐतिहासिक विकास पर चर्चा की है। उन्होंने बताया कि ज्योतिष का ज्ञान न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक क्रियाकलापों में महत्वपूर्ण है, बल्कि यह जीवन के विभिन्न पहलुओं में मार्गदर्शन भी प्रदान करता है। पाठ में यह भी उल्लेख किया गया है कि ज्योतिष शास्त्र का अध्ययन विभिन्न ग्रंथों और स्रोतों से किया गया है, जिनमें प्राचीन भारतीय ग्रंथों का योगदान महत्वपूर्ण है। कुल मिलाकर, यह पाठ ज्योतिष शास्त्र के अध्ययन और इसके व्यावहारिक उपयोगों की आवश्यकता पर जोर देता है, साथ ही लेखक की अध्ययन यात्रा और उसके लिए प्राप्त सहयोग का भी वर्णन करता है।


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