वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस सौंदर्य विधान का तुलनात्मक अध्ययन | Valmiki Ramayan Aur Ramcharitmanas Soindarya Vidhan Ka Tulnatmak Adhyayan

By: डॉ जगदीश शर्मा - Dr. Jagdeesh Sharma


दो शब्द :

इस पाठ में डॉ. जगदीश शर्मा द्वारा लिखित "वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस: सौन्दर्य-विधान का तुलनात्मक अध्ययन" पर चर्चा की गई है। लेखक ने दो महान काव्यों का तुलनात्मक विश्लेषण करने का प्रयास किया है, जिसमें वाल्मीकि की रामायण और तुलसीदास की रामचरितमानस शामिल हैं। पाठ में बताया गया है कि दोनों काव्य विभिन्न समय में लिखे गए, फिर भी इनमें एक दूसरे के प्रति सम्मान और प्रभाव स्पष्ट है। रामचरितमानस की रचना में वाल्मीकि की काव्य परंपरा का अनुसरण किया गया है, लेकिन इसमें एक नवीनता भी है। तुलसीदास ने अपने काव्य में पहले की परंपराओं का आदान-प्रदान किया है, जिससे दोनों काव्य के बीच एक गहरा संबंध स्थापित होता है। लेखक ने यह भी बताया कि तुलनात्मक अध्ययन में सौन्दर्य-विधान, चरित्र-चित्रण, और काव्य की संरचना पर ध्यान केंद्रित किया गया है। उन्होंने यह स्पष्ट किया है कि सौन्दर्यशास्त्र के विभिन्न पहलुओं की तुलना करते समय दोनों काव्यों के रचनात्मक कौशल और भावनात्मक गहराई का विश्लेषण किया गया है। पाठ में यह निष्कर्ष निकाला गया है कि वाल्मीकि का दृष्टिकोण अधिक वस्तुपरक था, जबकि तुलसीदास का दृष्टिकोण भावनात्मक और भक्ति पर आधारित था। इस प्रकार, दोनों काव्यों के सौन्दर्य विधान में स्वायत्तता और भिन्नता की पहचान की गई है। लेखक ने भारतीय और पश्चिमी साहित्य में सौन्दर्यशास्त्र के विभिन्न तत्वों की चर्चा करते हुए यह बताया है कि भारतीय काव्यशास्त्र में सौन्दर्य के तत्वों का गहरा प्रभाव है। अंत में, डॉ. शर्मा ने यह स्पष्ट किया कि इस अध्ययन का उद्देश्य न केवल तुलनात्मक दृष्टि प्रदान करना था, बल्कि दोनों काव्यों के सौन्दर्य विधान का गहराई से विश्लेषण करना भी था, जिससे पाठकों को उनके काव्यात्मक और सौंदर्यात्मक पहलुओं की समझ हो सके।


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