बकरी | Bakari
- श्रेणी: नाटक/ Drama साहित्य / Literature
- लेखक: कविता नागपाल - Kavita Naagpal सर्वेश्वर दयाल सक्सेना - Sarveshwar Dayal Saxena
- पृष्ठ : 54
- साइज: 0 MB
- वर्ष: 1920
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दो शब्द :
यह पाठ इब्बाहीम अल्काजी के साथ बातचीत के बाद लिखे गए नाटक की भूमिका पर आधारित है। नाटक का उद्देश्य हिंदी में आम आदमी की समस्याओं को उजागर करना है। इसे राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की मंडली ने प्रस्तुत किया था, लेकिन विधिवत प्रदर्शन नहीं हो सका। बाद में, इसे लखनऊ में रणजीत कपूर द्वारा प्रस्तुत किया गया, जहाँ इसे पुरस्कार भी मिला। नाटक के प्रगतिशील विषयों और रूपों में परिवर्तन किए गए हैं, और इसे आलख कविता नागपाल ने संपूर्ण रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया। पाठ में उल्लेख किया गया है कि यदि हिंदी में जन चेतना को सही ढंग से प्रस्तुत करने वाला कोई नाटक होता, तो यह नाटक न लिखा जाता। नाटक के विकास का उद्देश्य यह है कि इसे गांवों, स्कूलों और कॉलेजों में प्रस्तुत किया जाए, ताकि आम जनता तक पहुँच सके। पाठ में यह भी बताया गया है कि मौजूदा राजनीतिक और सामाजिक संकटों के प्रभाव से नाटककारों ने जन आंदोलनों को अपने नाटकों में शामिल किया है। नाटक "बकरी" में नौटकी और पारसी थियेटर की शैलियों का समावेश किया गया है, जो इसे एक ठोस सामाजिक विमर्श प्रदान करता है। यह नाटक जनविरोधी और जनविकास विरोधी राजनीति पर प्रहार करते हुए आम आदमी की पीड़ा को उजागर करता है। इस नाटक को खुले मंच पर प्रस्तुत करने के लिए तैयार किया गया है ताकि इसे अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाया जा सके। नाटककार ने इसे एक ऐसे मंच पर प्रस्तुत करने का प्रयास किया है जहाँ यह बिना किसी भारी खर्च के खेला जा सके। इस प्रकार, यह पाठ नाटक के विकास, उसके उद्देश्य और प्रस्तुति के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण विवरण प्रस्तुत करता है, जो आम आदमी की समस्याओं और उनके प्रति सामाजिक संवेदनशीलता को उजागर करता है।
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