गोरा | Gora
- श्रेणी: उपन्यास / Upnyas-Novel साहित्य / Literature
- लेखक: रवीन्द्रनाथ टैगोर - Ravindranath Tagore
- पृष्ठ : 455
- साइज: 29 MB
-
-
Share Now:
दो शब्द :
"गोरा" रवींद्रनाथ ठाकुर की एक प्रसिद्ध कहानी है, जिसमें विनयभूषण नामक एक युवा व्यक्ति के जीवन के एक महत्वपूर्ण क्षण को दर्शाया गया है। कहानी का आरंभ सावन के एक सुंदर सवेरे से होता है, जब विनयभूषण अपने घर के बरामदे में खड़ा होकर बाहर का दृश्य देखता है। वह कॉलेज की पढ़ाई पूरी कर चुका है, लेकिन जीवन में किसी विशेष दिशा की तलाश में है। इसी दौरान, उसकी नजर पड़ोस के घर की छत पर कौओं और चिड़ियों पर पड़ती है, जो उसके मन में एक अजीब-सी भावना जगाते हैं। तभी अचानक एक वृद्ध व्यक्ति की घोड़ा-गाड़ी एक लड़की के साथ सड़क पर दुर्घटनाग्रस्त होती है। विनय तुरंत उनकी सहायता के लिए आगे बढ़ता है और वृद्ध को उसके घर में ले जाता है। लड़की, जो वृद्ध की पुत्री है, विनय की सहायता के लिए आभार व्यक्त करती है। यह दृश्य विनय के लिए एक नया अनुभव है, क्योंकि वह पहले कभी इस तरह की स्थिति का सामना नहीं किया था। विनय को लड़की का सौंदर्य और उसकी आँखों में एक गहरी शक्ति का आभास होता है, जिससे वह प्रभावित होता है। वृद्ध व्यक्ति को थोड़ी चोट लगती है, लेकिन डॉक्टर की मदद से उसे ठीक कर लिया जाता है। इस प्रक्रिया में विनय और लड़की के बीच एक मौन संवाद होता है, जिसमें विनय अपनी असमर्थता और संकोच का अनुभव करता है। वृद्ध व्यक्ति, परेशचंद्र भट्टाचार्य, विनय का नाम पूछते हैं और विनय अपनी पहचान बताता है। दोनों के बीच बातचीत होती है और लड़की, जो विनय को अपनी आँखों से देखती है, उसकी ओर एक छोटे से नमस्कार के साथ विदा होती है। घटना के बाद, विनय अपने अनुभव के बारे में सोचता है और अपनी असामान्य भावनाओं का विश्लेषण करता है। उसे अपनी ज़िंदगी की तुच्छता का अहसास होता है और वह उस लड़की के प्रति अपनी गहरी भावना को महसूस करता है। कहानी का अंत विनय के मन में उस लड़की और उसके पिता के प्रति एक नई समझ और स्नेह के भाव के साथ होता है, जो उसके जीवन में एक नई दिशा और प्रकाश लाते हैं। कहानी में प्रेम, मानवीय संबंधों और आत्म-
Please share your views, complaints, requests, or suggestions in the comment box below.