अवधी ग्रन्थावली-खंड-5 | Awadhi Granthawali-khand-5

By: जगदीश पीयूष - Jagdish Piyush
अवधी ग्रन्थावली-खंड-5 | Awadhi Granthawali-khand-5 by


दो शब्द :

अवधी लोक-साहित्य में लोककथाओं का एक महत्वपूर्ण स्थान है, जो लोकमानस की गहरी अभिव्यक्तियाँ प्रस्तुत करती हैं। ये कथाएँ जीवन के विभिन्न पहलुओं को छूते हुए मानव के अनुभवों की व्याख्या करती हैं। लोककथाओं के माध्यम से आचार-विचार, खान-पान, रीति-रिवाज, धार्मिक विश्वास, और सुख-दुख का प्रतिबिंब मिलता है। अवधी लोककथाएँ सरल और भोले-भाले उद्गारों का संग्रह हैं, जिसमें लोक-जीवन का व्यापक चित्रण होता है। अवधी गद्य लेखन का क्षेत्र भी विस्तृत हो रहा है, जैसे कि डॉ. मधुकर उपाध्याय का उपन्यास "किस्सा सूबेदार सीता राम पांडे" और विभिन्न रेडियो नाटक, कहानियाँ, और निबंध। अवधी ग्रंथावली में लोककथाओं का समावेश इसे महत्वपूर्ण बनाता है। अवधी साहित्य को आगे बढ़ाने के लिए कई विद्वानों और संगठनों ने योगदान दिया है। प्रो. सूर्यप्रसाद दीक्षित ने लखनऊ विश्वविद्यालय में अवधी को पाठ्यक्रम में शामिल किया, और अन्य विद्वानों ने भी विभिन्न विश्वविद्यालयों में अवधी को स्थान दिलाने में मदद की। डॉ. बाबूराम सक्सेना का शोध ग्रंथ "अवधी का विकास" इस क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कार्य है। अवधी साहित्य को बढ़ावा देने के लिए कई सम्मेलन, गोष्ठियाँ, और पत्रिकाएँ प्रकाशित की गईं हैं, जैसे "बिरवा" और "बोली-बानी"। इन प्रयासों के माध्यम से अवधी साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ी है और कई नए साहित्यकारों का उदय हुआ है। अवधी ग्रंथावली का यह खंड अवधी गद्य साहित्य पर केन्द्रित है, जिसमें प्राचीन लोक कथाएँ शामिल हैं। इस खंड का संयोजन प्रख्यात कथाकार रविन्द्र कालिया ने किया है, जो अवधी अकादेमी से जुड़े हुए हैं। इस प्रकार, अवधी लोककथाएँ न केवल सांस्कृतिक धरोहर हैं, बल्कि आधुनिक साहित्य में भी महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं।


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