दो शब्द :

आगम-शास्त्र, जिसे गौड़पादाचार्य द्वारा लिखा गया है, भारतीय दार्शनिक साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इसे शंकराचार्य की विचारधारा को समझने के लिए आवश्यक माना जाता है। भदन्त आनन्द कौसल्यायन ने इस ग्रंथ का हिंदी में अध्ययन किया है, जिससे यह पाठकों के लिए доступible हुआ है। आगम-शास्त्र का अध्ययन माण्डक्य उपनिषद् पर आधारित है। इसे विभिन्न नामों से जाना जाता है, जैसे माण्डकय-कारिका, गौड़पाद कारिका, और वेदान्त-मूल। यह ग्रंथ अद्वैत वेदांत के सिद्धांतों को समझाने में सहायक है। गौड़पादाचार्य का समय चतुर्थ या पंचम शताब्दी में माना जाता है, और वे शंकराचार्य के गुरु के रूप में प्रतिष्ठित हैं। गौड़पादाचार्य ने अपने विचारों की सामग्री विभिन्न स्रोतों से प्राप्त की, जिसमें उपनिषद और बौद्ध ग्रंथ शामिल हैं। उनके विचार बौद्ध दृष्टिकोण से प्रभावित प्रतीत होते हैं, और ऐसा लगता है कि शंकराचार्य भी उनके विचारों का अनुसरण करते थे। आगम-शास्त्र के चार परिच्छेद हैं, जो स्वतंत्र कृतियों का समुच्चय हैं। प्रथम परिच्छेद 'आगम' में विभु, तेजस, प्रज्ञा और तुर्य की अवस्थाओं का वर्णन है। दूसरे परिच्छेद में वस्तुओं की अयथार्थता का उल्लेख है, जिसमें आत्मा को कल्पना मात्र बताया गया है। तीसरे और चौथे परिच्छेद में भी अद्वैत वेदांत के सिद्धांतों की चर्चा है। गौड़पादाचार्य का यह ग्रंथ अद्वैतवाद के लिए एक महत्वपूर्ण आधार है, और इसमें बौद्ध विचारों का भी समावेश है। इस प्रकार, आगम-शास्त्र भारतीय दार्शनिक परंपरा में एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जो अद्वैत वेदांत के मूल सिद्धांतों को स्पष्ट करता है।


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