शिव सूत्र | Shiv Sutra
- श्रेणी: ग्रन्थ / granth दार्शनिक, तत्त्वज्ञान और नीति | Philosophy धार्मिक / Religious
- लेखक: आचार्य श्री रजनीश (ओशो) - Acharya Shri Rajneesh (OSHO)
- पृष्ठ : 284
- साइज: 10 MB
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दो शब्द :
इस पाठ में भगवान श्री रजनीश द्वारा दिए गए शिव-सूत्रों का महत्व और उनकी गहराई का वर्णन किया गया है। शिव-सूत्र अध्यात्मिक साधना के लिए महत्वपूर्ण मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। ये सूत्र संक्षिप्त और सारगर्भित हैं, जो साधक को आत्मज्ञान की ओर प्रेरित करते हैं। रजनीश ने बताया है कि मनुष्य अपनी संकीर्णता से ग्रसित है और उसे अपने विराट स्वरूप का बोध नहीं है। उन्होंने इसे एक बीज के रूप में समझाया है, जिसमें वृक्ष की पूरी संभावनाएँ छिपी होती हैं। मनुष्य को यह समझना होगा कि वह केवल लहर नहीं, बल्कि सागर है। अहंकार और पृथकता की भावना ही मनुष्य को उसके वास्तविक स्वरूप से दूर रखती है। रजनीश का संदेश है कि जब मनुष्य अपने भीतर के विराट को पहचान लेगा, तब उसकी संकीर्णता समाप्त हो जाएगी। वे साधना के माध्यम से आत्म-साक्षात्कार की दिशा में बढ़ने का आह्वान करते हैं। रजनीश के अनुसार, सच्ची साधना तब होती है जब साधक अपने अहंकार को छोड़कर समर्पण की भावना से परमात्मा की ओर बढ़ता है। ज्ञान के आक्रमण और समर्पण के मार्गों का भी उल्लेख किया गया है, जिसमें समर्पण का मार्ग अधिक प्रभावी और स्थायी है। इस प्रकार, पाठ में यह स्पष्ट किया गया है कि आत्मा और परमात्मा की पहचान के लिए साधना आवश्यक है, और इस प्रक्रिया में रजनीश के उपदेश महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
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