ब्रामण गीता सार | Braman Geeta Saar

By: रामचंद्र शुक्ल - Ramchandra Shukla


दो शब्द :

इस पाठ में "भ्रमरगीत" का महत्व और इसकी विशेषताओं पर चर्चा की गई है। लेखक ने बताया है कि "भ्रमरगीत" सूरसागर का एक अनमोल रत्न है, लेकिन इसके विभिन्न संस्करणों में पाठ की गड़बड़ियाँ हैं। सूरदास के पदों का सही पाठ प्राप्त करना कठिन है। लेखक ने 1920 में भ्रमरगीत के अच्छे पदों को एकत्रित कर प्रकाशित करने का प्रयास किया था, लेकिन कई कारणों से यह संभव नहीं हो सका। अब यह संग्रह पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया गया है, जिसमें कठिन शब्दों और वाक्यों के अर्थ भी दिए गए हैं। सूरदास की रचनाओं में ज्ञान और योग के संबंध में एक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया गया है। उन्होंने ज्ञान और योग के मार्ग को संकुचित और कठिन बताया है जबकि भक्ति के मार्ग को सरल और सुलभ। सूरदास ने उद्धव और गोपियों के संवाद के माध्यम से भक्ति का महत्व स्पष्ट किया है और ज्ञान-योग के विरोध में प्रेमयोग को प्राथमिकता दी है। लेखक ने यह भी बताया है कि सूरदास का भक्ति मार्ग न केवल सरल है बल्कि इसमें गोपन, रहस्य या उलझाव का अभाव है। उन्होंने ज्ञान और योग के साधकों की तुलना में भक्ति के अनुयायियों की स्थिति को अलग और बेहतर साबित किया है। लेखक ने सूरदास के काव्य शिल्प और उसमें भावों की गहराई पर भी प्रकाश डाला है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि सूरदास का काव्य न केवल भावनात्मक है बल्कि उसमें गहन विचार भी समाहित हैं। अंत में, पाठ में यह बताया गया है कि "भ्रमरगीत" सूरसागर की एक विशेष कड़ी है, जिसमें सूरदास के काव्य का सारांश और उनकी काव्यात्मक विशेषताएँ समाहित हैं। लेखक ने पाठकों को इस संग्रह का लाभ उठाने के लिए प्रेरित किया है।


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