दो शब्द :

इस पाठ में पिताजी और उनके बेटे के बीच पाचन तंत्र के बारे में चर्चा की गई है। पिताजी बेटे को समझाते हैं कि कैसे भोजन का पाचन होता है और यह प्रक्रिया कितनी जटिल है। वे बताते हैं कि भोजन पहले पाकस्थली में जाता है, जहाँ यह खट्टा रस के प्रभाव से पचता है। इसके बाद, यह छोटी आँत में जाता है, जहाँ इसे विभिन्न रसों के साथ मिलाया जाता है। पिता यह भी बताते हैं कि छोटी आँत की दीवारों में कई सूक्ष्म केशिकाएँ होती हैं, जो भोजन के उपयोगी तत्वों को सोखती हैं और रक्त में मिलाती हैं। वे पित्त और क्लोम रस के बारे में भी जानकारी देते हैं, जो जिगर और क्लोम ग्रंथि से निकलते हैं और भोजन के पाचन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पिताजी के अनुसार, पाचन प्रक्रिया में लगभग 15 से 18 घंटे लगते हैं, जिसमें से 5-6 घंटे भोजन पेट में रहता है और लगभग 10-12 घंटे छोटी आँत में। अंत में, वे बताते हैं कि बड़ी आँत में केवल अनुपयोगी भाग ही बचता है, जिसे मल के रूप में बाहर निकाला जाता है। इस प्रकार, पिता अपने बेटे को स्वास्थ्य और पाचन की महत्वपूर्ण बातें सरल और स्पष्ट तरीके से समझाते हैं, जिससे उसे अपने शरीर के कामकाज को बेहतर तरीके से समझने में मदद मिलती है।


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