धर्मशास्त्र का इतिहास प्रथम भाग | Dharmshastra Ka Itihas-part 1

By: पांडुरंग वामन काणे - Dr. Pandurang Vaman Kane


दो शब्द :

इस पाठ का सारांश इस प्रकार है: यह पाठ भारतीय धर्म और लोक-विधियों के अध्ययन पर केंद्रित है, जिसमें प्राचीन और मध्यकालीन भारतीय संस्कृति, धर्मशास्त्र, और विभिन्न सामाजिक प्रक्रियाओं का विवेचन किया गया है। लेखक डॉ. पांडुरंग वामन काणे ने धर्मशास्त्र का एक विस्तृत एवं समग्र अध्ययन प्रस्तुत किया है, जिसमें वेदों, उपनिषदों, पुराणों, और स्मृतियों से लेकर अन्य धार्मिक ग्रंथों का संदर्भ दिया गया है। धर्म का भारतीय समाज में व्यापक महत्व है, और यह जन्म, मृत्यु, विवाह, शिक्षा, व्यवसाय, खान-पान, जात-पात, और शौच आदि सभी क्षेत्रों में प्रकट होता है। लेखक ने यह बताया है कि भारतीय धर्मशास्त्र का अध्ययन करना कितना चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि इसमें कई प्रकार की सामग्री और विचारधाराएँ समाहित हैं। पुस्तक के पहले भाग में धर्म, धर्मशास्त्र, वर्ण व्यवस्था, अस्पृश्यता, दास प्रथा, संस्कार, विवाह, दान, और यज्ञों के बारे में चर्चा की गई है। लेखक ने यह स्पष्ट किया है कि धर्मशास्त्र में वर्णित विधियाँ हजारों वर्षों से समाज में प्रचलित रही हैं और इनसे समाज के विभिन्न पहलुओं पर प्रभाव पड़ा है। इस ग्रंथ का उद्देश्य यह है कि पाठक भारतीय धर्म और संस्कृति के विभिन्न पहलुओं को समझें और उनकी महत्ता को पहचानें। लेखक ने यह भी उल्लेख किया है कि इस कार्य में उन्होंने विभिन्न विद्वानों की कृतियों का संदर्भ लिया है और आशा व्यक्त की है कि यह पुस्तक पाठकों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी। इस प्रकार, यह पाठ भारतीय धर्मशास्त्र का एक समग्र अध्ययन प्रस्तुत करता है, जो भारतीय समाज और संस्कृति के विविध पहलुओं को समझने में मदद करेगा।


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