भाव और मनोविकार | Bhav aur Manovikar

By: रामचंद्र शुक्ल - Ramchandra Shukla
भाव और  मनोविकार  | Bhav aur Manovikar by


दो शब्द :

इस पाठ में लेखक ने अपनी यात्रा के अनुभवों को साझा किया है, जिसमें उन्होंने अपने विचारों और भावनाओं को व्यक्त किया है। यात्रा के दौरान, लेखक ने बुद्धि और हृदय के साथ मिलकर नए स्थलों का अन्वेषण किया। वे यह स्पष्ट करते हैं कि यह निबंध विषय-प्रधान है या व्यक्ति-प्रधान, इसे निर्णय पाठकों पर छोड़ते हैं। पुस्तक में विभिन्न भावनाओं और मानवीय संवेदनाओं जैसे उत्साह, करुणा, लज्जा, प्रेम, भय और क्रोध आदि का विश्लेषण किया गया है। लेखक ने कविता और काव्य के महत्व पर भी विचार किया है, जिसमें उन्होंने बताया है कि कविता केवल अलंकारों का खेल नहीं है, बल्कि यह भावनाओं और अनुभवों का गहन वर्णन है। उनकी दृष्टि में, कविता का उद्देश्य मनुष्य के भीतर की संवेदनाओं को जागृत करना है, जो कि समाज के सभी वर्गों में आवश्यक है। भारतेन्दु हरिश्चंद्र का उल्लेख करते हुए लेखक ने हिंदी गद्य साहित्य के विकास में उनके योगदान को महत्वपूर्ण माना है। उन्होंने यह भी बताया कि भारतेन्दु ने हिंदी गद्य को एक संरचना और स्पष्टता प्रदान की, जिसके कारण यह साहित्यिक परंपरा में स्थायी रूप से स्थापित हो गया। कुल मिलाकर, पाठ में मनुष्य की भावनाओं, काव्य के महत्व और हिंदी साहित्य के विकास पर विचार किया गया है, जो पाठकों को गहरी सोच में डालने के लिए प्रेरित करता है।


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