तैत्तिरीय उपनिषद | Taitriyopanishad

By: अज्ञात - Unknown
तैत्तिरीय उपनिषद | Taitriyopanishad by


दो शब्द :

चैत्तिरीय-उपनिषद्, तैक्तिरीय आरण्यक का एक महत्वपूर्ण भाग है, जिसमें तैक्तिरीय शाखा के विभिन्न प्रपाठक समाहित हैं। इस उपनिषद् में कुल तीन अध्याय हैं: पहला "शिक्षाचल्ली", दूसरा "प्रह्मचल्ल्य" और तीसरा "भगुवल्ली"। पहले अध्याय में शिक्षाओं का वर्णन किया गया है, जबकि दूसरे और तीसरे अध्याय में अन्य महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा की गई है। पहले अध्याय में 12 अनुवाक हैं, जहां ध्यान केंद्रित किया गया है कि कैसे विभिन्न शिक्षाएं आवश्यक हैं। इसमें अचिवाक के समाधि प्राप्त करने की प्रक्रिया का वर्णन किया गया है। दूसरे अध्याय में 6 और तीसरे अध्याय में 12 अनुवाक हैं, जिनमें विभिन्न शिक्षाओं का विवरण है। इसके अतिरिक्त, उपनिषद् में प्रार्थना के माध्यम से आत्मा की महिमा और उसके प्रकाश का उल्लेख किया गया है। यह स्पष्ट किया गया है कि विभिन्न इंद्रियों के द्वारा आत्मा का अनुभव किया जाता है, और सभी जीवित रूपों का प्रकाश आत्मा से ही है। उपनिषद् में दिए गए मंत्रों में सत्य, ज्ञान और शांति की प्रार्थना की गई है। ये मंत्र जीवन के विभिन्न पहलुओं में शांति और संतुलन लाने के लिए हैं। उपनिषद् में प्राचीन ज्ञान और शिक्षाओं का समावेश है, जो आध्यात्मिकता और आत्मा के ज्ञान की ओर इंगित करते हैं। कुल मिलाकर, चैत्तिरीय-उपनिषद् गहन आध्यात्मिक विचारों और शिक्षाओं का संग्रह है, जो मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझाने में सहायक है।


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