संस्कृत स्वयं शिक्षक | Sanskrit Swayam Shikshak

By: श्रीपाद दामोदर सातवलेकर - Shripad Damodar Satwalekar
संस्कृत स्वयं शिक्षक | Sanskrit Swayam Shikshak by


दो शब्द :

इस पाठ का सारांश इस प्रकार है: पाठ में संस्कृत के स्वर और व्यञ्जनों का उच्चारण, उनकी लंबाई, और विभिन्न प्रकार के वर्णों का वर्णन किया गया है। हस्व स्वर की उच्चारण की लंबाई एक मात्रा होती है, दीघे स्वर की दो मात्रा और प्लुत स्वर की तीन मात्रा होती है। उदाहरण के तौर पर, किसी को दूर से पुकारते समय प्लुत स्वर का प्रयोग किया जाता है। स्वरों के भेदों के अलावा, उदात्त, अनुदात्त, और स्वरित के तीन भेद भी बताए गए हैं। व्यञ्जनों को कण्ठ, तालु, मूर्धा, दन्त, और श्रोष्ठ स्थान के अनुसार वर्गीकृत किया गया है। विभिन्न व्यञ्जनों के उच्चारण के लिए मृदु, कठोर, अल्प-प्राण, महा-प्राण, और अनुनासिक जैसे वर्गों का भी उल्लेख किया गया है। पाठ में वर्णों की उत्पत्ति के बारे में बताया गया है कि मुख के विभिन्न स्थानों में हवा के दबाव से भिन्न-भिन्न वर्णों का उच्चारण होता है। उदाहरण के लिए, स्वर से व्यञ्जनों की उत्पत्ति का वर्णन किया गया है। इसके अलावा, पाठकों को सही उच्चारण की महत्ता और संस्कृत की वर्ण व्यवस्था के बारे में भी बताया गया है। इस प्रकार, पाठ में संस्कृत की ध्वनि व्यवस्था और उच्चारण तकनीक पर विशेष ध्यान दिया गया है, जिससे पाठक संस्कृत में सही तरीके से संवाद कर सकें और ग्रंथों को समझ सकें।


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