सत्य के प्रयोग अथवा आत्मकथा | Satya ke prayog Or Aatmakatha

By: मोहनदास करमचंद गांधी - Mohandas Karamchand Gandhi
सत्य के प्रयोग अथवा आत्मकथा  | Satya ke prayog Or Aatmakatha by


दो शब्द :

इस पाठ का सारांश इस प्रकार है: लेखक महात्मा गांधी ने अपनी आत्मकथा "सत्य के प्रयोग" लिखने का निर्णय लिया है, जो उनके जीवन के अनुभवों और प्रयोगों पर आधारित है। उन्होंने पहले आत्मकथा लिखने का प्रयास किया था, लेकिन विभिन्न कारणों से वह अधूरी रह गई। गांधीजी ने यह स्पष्ट किया है कि आत्मकथा का उद्देश्य केवल अपने जीवन का वर्णन करना नहीं है, बल्कि सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों को उजागर करना है, जिन पर उन्होंने अपने जीवन और राजनीतिक कार्यों को आधारित किया। गांधीजी का मानना है कि उनके प्रयोग और अनुभवों से पाठकों को प्रेरणा मिलेगी और वे अपने जीवन में सत्य के मार्ग पर आगे बढ़ सकेंगे। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि वे अपनी व्यक्तिगत भावनाओं और विचारों को साझा करेंगे, लेकिन साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि उनकी आत्मकथा को प्रमाण के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। यह एक संदर्भ के रूप में होनी चाहिए, जिससे लोग अपने अनुभवों का निर्माण कर सकें। गांधीजी ने यह भी कहा कि सत्य उनका सर्वोच्च आदर्श है, और उन्होंने अपने जीवन के विभिन्न पहलुओं को इस दृष्टिकोण से देखने का प्रयास किया है। उनका लेखन और राजनीतिक कार्य सत्य की खोज में है, और वे चाहते हैं कि पाठक उनकी यात्रा में उनके साथ चलें। अंततः, यह आत्मकथा न केवल उनके व्यक्तिगत जीवन की कहानी है, बल्कि सत्य और आत्मा के गहरे प्रयोगों का दस्तावेज भी है।


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