मानव-शरीर-रचना-विज्ञान | Manav-Sarir-Rachna-Vigyan
- श्रेणी: Ayurveda | आयुर्वेद जीवविज्ञान/ Biology
- लेखक: मुकुंद स्वरुप वर्मा - Mukund Swarup Verma
- पृष्ठ : 283
- साइज: 16 MB
- वर्ष: 1956
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दो शब्द :
इस पाठ में शिक्षा प्रणाली, विशेषकर उच्च शिक्षा में मातृभाषा के महत्व पर चर्चा की गई है। लेखक ने बताया है कि भारतीय शिक्षा प्रणाली में अंग्रेजी भाषा का प्रभाव अत्यधिक है, जिससे मातृभाषाओं का विकास प्रभावित हुआ है। उन्होंने 19वीं शताब्दी में विभिन्न विद्वानों के विचारों का उल्लेख किया है, जिन्होंने मातृभाषा में शिक्षा देने की आवश्यकता और महत्व को रेखांकित किया। लेखक ने यह भी बताया कि उच्च शिक्षा में मातृभाषा का उपयोग न होने के कारण देश का साहित्य समृद्ध नहीं हो पाया है। उन्होंने तर्क किया है कि शिक्षा की सफलता मातृभाषा के माध्यम से ही संभव है, क्योंकि यह विद्यार्थियों की सोच और आत्मा से मेल खाती है। इसके बाद, लेखक ने हिंदी को एक राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार करने की आवश्यकता पर बल दिया, ताकि सभी विद्यार्थी एक समान भाषा में उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकें। उन्होंने यह भी कहा कि चिकित्सा विज्ञान में शरीर रचना के ज्ञान का होना अत्यंत आवश्यक है, खासकर शल्य चिकित्सा के क्षेत्र में। पुस्तक का उद्देश्य आयुर्वेदिक कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए शरीर रचना विज्ञान को सरल और स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करना है। लेखक ने यह भी संकेत दिया है कि शारीरिक संरचना का अध्ययन केवल पाठ्यक्रम से नहीं, बल्कि प्रयोगात्मक अध्ययन के माध्यम से ही संभव है। इस प्रकार, पाठ में शिक्षा और चिकित्सा विज्ञान के महत्व को समझाया गया है और मातृभाषा के उपयोग की आवश्यकता को उजागर किया गया है।
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