सौंदर्य लहरी | Soundarya Lahari

By: अज्ञात - Unknown
सौंदर्य लहरी | Soundarya Lahari by


दो शब्द :

यह पाठ श्रीमच्छंकर भगवत्पाद के जीवन और उनके योगदान की चर्चा करता है। भगवत्पाद का जन्म 788 ईस्वी में हुआ था और उनका नाम शंकराचार्य है। उनके पिता का नाम शिवगुरु और माता का नाम अयेव था। वे अत्यंत बुद्धिमान और साध्वी प्रवृत्तियों के व्यक्ति थे। उन्होंने बचपन से ही वेद और शास्त्रों का अध्ययन किया और 12 वर्ष की आयु में उन्होंने शिक्षा समाप्त की। भगवत्पाद ने सन्यास लिया और वे ब्रह्मचarya की अवस्था में ही तीव्र वैराग्य का अनुभव करने लगे। उन्होंने श्रीगोविंद पादाचार्य से दीक्षा ली और काशी जाकर सनातन वैदिक धर्म की पुनर्स्थापना का कार्य किया। उन्होंने अद्वैत वेदांत के सिद्धांत की नींव रखी और 22 वर्ष की आयु में अनेक ग्रंथों की रचना की। उनका मुख्य कार्य 'सौन्दर्यलहरी' है, जो एक स्तोत्र है और इसमें भगवती की महिमा का वर्णन किया गया है। भगवत्पाद के विचारों में तांत्रिक उपासना, शक्ति की उपासना, और ध्यान का महत्व है। उन्होंने मानव जीवन में आत्मा, मन, और प्राण की समझ को बढ़ाने का प्रयास किया है। यह पुस्तक स्वामी विष्णुतीर्थ द्वारा हिंदी में अनुदित की गई है, जिसमें पाठकों के लिए साधना और उपासना के गूढ़ रहस्यों को सरलता से प्रस्तुत किया गया है। स्वामीजी ने इस ग्रंथ के माध्यम से भगवत्पाद के विचारों और शिक्षाओं को आम जन तक पहुँचाने का प्रयास किया है, ताकि लोग आध्यात्मिक उन्नति कर सकें। इस प्रकार, पाठ में श्रीमच्छंकर भगवत्पाद के जीवन, उनके सिद्धांतों, और 'सौन्दर्यलहरी' के महत्व को समझाया गया है। यह पाठ साधकों और भक्तों के लिए प्रेरणादायक और ज्ञानवर्धक है।


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