तांत्रिक वाङ्मय में शक्य दृष्टि | Tantrik Vangmaya Mein Shakti Drishti

By: महामहोपाध्याय श्री गोपीनाथ कविराज - Mahamahopadhyaya Shri Gopinath Kaviraj


दो शब्द :

महामहोपाध्याय डॉ. श्रीगोपीनाथ कविराज की यह पुस्तक 'तान्त्रिक वाड्य में शाक्तदृष्टि' बिहार-राष्ट्रभाषा-परिषद् द्वारा प्रकाशित की गई है। डॉ. कविराज, जो तान्त्रिक वाड्य के विशेषज्ञ माने जाते हैं, ने इस पुस्तक में भारतीय तन्त्र और आगम साहित्य का गहन अध्ययन प्रस्तुत किया है। इस ग्रंथ में तन्त्र के विभिन्न पहलुओं, जैसे सृष्टि, मन्त्र-निर्धारण, देवता-स्थापन आदि का वर्णन किया गया है। पुस्तक में यह बताया गया है कि कैसे प्राचीन तन्त्र साहित्य का ज्ञान समय के साथ खो गया और इसके पुनर्जीवित करने के लिए महर्षि दुर्वासा का उल्लेख किया गया है। उन्होंने शैवागम को तीन भागों में विभक्त करके इसके ज्ञान का प्रचार किया। कविराजजी का जन्म 1887 में हुआ था और उन्होंने संस्कृत, अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, पालि, प्राकृत आदि भाषाओं में विद्या प्राप्त की है। उनकी विद्वता का परिचय न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में है। पुस्तक के प्रकाशन की प्रक्रिया में कई बाधाएँ आईं, लेकिन अंततः यह ग्रंथ पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया गया है। यह ग्रंथ न केवल हिंदी साहित्य में बल्कि भारतीय साहित्य में भी महत्वपूर्ण स्थान रखता है। कविराजजी के योगदान के लिए परिषद् ने उनका आभार व्यक्त किया है। इस प्रकार, यह ग्रंथ तन्त्र और आगम साहित्य के अध्ययन के लिए एक महत्वपूर्ण संदर्भ है, जिसमें कविराजजी ने अपने गहन ज्ञान और अनुभव को प्रस्तुत किया है।


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