भगवन परशुराम | Bhagwan Parshuram
- श्रेणी: जीवनी / Biography धार्मिक / Religious
- लेखक: कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी - Kanaiyalal Maneklal Munshi
- पृष्ठ : 404
- साइज: 11 MB
- वर्ष: 1948
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दो शब्द :
पाठ में लेखक ने महाभारत और पुराणों से प्रेरित होकर नाटक लिखने की अपनी यात्रा का वर्णन किया है। 1621-22 में उन्होंने महाभारत के प्रसंगों को एक नाट्य रूप में प्रस्तुत करने का संकल्प लिया और पहले चार नाटक लिखे, जिनमें 'पुरन्दर पराजय', 'श्रविभकत प्रात्मा', 'तर्पण', और 'पुत्न समोवडी' शामिल हैं। इसके बाद उन्होंने 'शम्बर फन्या', 'देवे दीघेलो' और 'विश्वामित्र ऋषि' जैसे नाटक भी लिखे। लेखक ने यह भी उल्लेख किया है कि नाटक गुजराती पाठकों के लिए सरल नहीं थे और उन्होंने कई पुराणों की कहानियों को अपने नाटकों में समाहित किया। उन्होंने ऋग्वेद और पुराणों के विभिन्न पात्रों और घटनाओं का उल्लेख किया है, जैसे ऋषि वशिष्ठ, राजा सुदास, तथा परशुराम के पराक्रम। परशुराम की कथा में लेखक ने उनके वीरतापूर्ण कार्यों का वर्णन किया, जैसे उन्होंने क्षत्रियों का विनाश किया और पृथ्वी को क्षत्रिय रहित किया। उनका व्यक्तित्व और प्रभाव इतने व्यापक थे कि उन्हें ईश्वर का अवतार माना गया। लेखक ने यह भी कहा कि भारतीय संस्कृति में परशुराम का आदर्श सदियों तक जीवित रहा है और उन्होंने अपने नाटकों के माध्यम से इस महत्ता का संरक्षण किया है। लेखक ने अपने 25 वर्षों के प्रयास को सफल मानते हुए कहा कि उन्होंने भारतीय संस्कृति को और समृद्ध करने का प्रयास किया है। उन्होंने अपने नाटकों को न केवल ऐतिहासिक दृष्टिकोण से, बल्कि मानवता के आदर्श के रूप में भी प्रस्तुत किया है। अंत में, लेखक ने यह संकेत दिया कि उनके नाटक भारतीय समाज और संस्कृति के लिए महत्वपूर्ण कड़ियाँ जोड़ते हैं।
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