भारतीय दर्शन की रूप रेखा | Bharatiya Darshan ki Rooprekha
- श्रेणी: Cultural Studies | सभ्यता और संस्कृति दार्शनिक, तत्त्वज्ञान और नीति | Philosophy भारत / India
- लेखक: बलदेव उपाध्याय - Baldev upadhayay
- पृष्ठ : 425
- साइज: 14 MB
- वर्ष: 1909
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दो शब्द :
इस पाठ में भारतीय दर्शन की एक महत्वपूर्ण धारा, चार्वाक-दर्शन, का सारांश प्रस्तुत किया गया है। चार्वाक-दर्शन भौतिकवादी दृष्टिकोण रखता है और इसे नास्तिकता की श्रेणी में रखा जाता है। इसके अनुसार जीवन का मुख्य उद्देश्य सुखद जीवन यापन है, जिसमें भौतिक सुखों का उपभोग करना प्राथमिकता है। चार्वाकों का मानना है कि आध्यात्मिक सुखों की खोज में जीवन को व्यर्थ नहीं करना चाहिए और उन्हें इस बात का प्रबल विश्वास था कि दुःख से भरे हुए लौकिक सुखों को त्यागना मूर्खता है। चार्वाकों का समाजिक दृष्टिकोण भी विशेष है, जिसमें वे दंडनीति और वार्ता को महत्वपूर्ण मानते हैं। उनका मानना है कि समाज का संगठन और व्यवस्था इसी दंडनीति पर निर्भर करती है। वे ईश्वर को मानने में संकोच करते हैं और इसे केवल एक शासक के रूप में देखते हैं, जो समाज को नियंत्रित करता है। चार्वाक दर्शन में लौकिक जीवन का अनुसरण करने की सलाह दी गई है, जबकि पारलौकिक साधनों को तिरस्कृत किया गया है। इसके साथ ही, पाठ में जैन-दर्शन का भी उल्लेख किया गया है, जो प्राचीन भारतीय विचारधारा का प्रतिनिधित्व करता है। जैन धर्म की नींव 'जिन' पर आधारित है, जो राग-दोष को जीतने वाले आचार्यों को संदर्भित करता है। जैन धर्म में तीर्थंकरों की संख्या चौबीस है, जिनमें महावीर का नाम प्रमुख है। जैन दर्शन के अनुसार, सच्चे अहिंसा और आत्म-निग्रह की शिक्षाओं का पालन किया जाता है। कुल मिलाकर, यह पाठ भारतीय दर्शन की विभिन्न धाराओं का संक्षिप्त लेकिन सारगर्भित विवरण प्रस्तुत करता है, जिसमें चार्वाक और जैन-दर्शन की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख किया गया है।
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