संस्कृत- निबन्ध- मन्दाकिनी | Sanskrit- Nibhand - Mandakini

By: डॉ औधाप्रसद मिश्र - Dr. Audhaprasad Mishra
संस्कृत- निबन्ध- मन्दाकिनी | Sanskrit- Nibhand - Mandakini by


दो शब्द :

यह पाठ संस्कृत भाषा और उसके महत्व पर केंद्रित है। इसमें संस्कृत को 'दैवी वाक्' के रूप में परिभाषित किया गया है, जो इसे एक दिव्य और अमर भाषा मानता है। लेखक ने संस्कृत के विकास का इतिहास प्रस्तुत किया है, जिसमें पाणिनि, कात्यायन और पतंजलि जैसे महान व्याकरणज्ञों का उल्लेख है। वे संस्कृत को भारतीय संस्कृति, धर्म और दर्शन का अभिन्न अंग मानते हैं, और यह भी बताते हैं कि यह भाषा न केवल साहित्यिक, बल्कि दार्शनिक और वैज्ञानिक ज्ञान का भी स्रोत है। पाठ में यह भी उल्लेख किया गया है कि संस्कृत भाषा का अध्ययन आवश्यक है, क्योंकि यह भारतीय संस्कृति की जड़ों से जुड़ी हुई है। यह शिक्षा, धर्म, और सामाजिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। लेखक ने संस्कृत भाषा की शिक्षा और संरक्षण के लिए उपाय सुझाए हैं, जैसे कि इसे स्कूलों में एक अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाना। इसके अलावा, पाठ में यह भी दर्शाया गया है कि संस्कृत भाषा की उपेक्षा हो रही है, जबकि इसका ज्ञान आवश्यक है। लेखक ने संस्कृत के विभिन्न ग्रंथों, जैसे वेद, उपनिषद, और महाकाव्य, के महत्व को रेखांकित किया है और इस बात पर बल दिया है कि संस्कृत का अध्ययन न केवल व्यक्तिगत विकास के लिए, बल्कि राष्ट्रीय और सांस्कृतिक पहचान के लिए भी आवश्यक है। अंततः, पाठ संस्कृत भाषा के प्रति जागरूकता बढ़ाने और इसके संरक्षण एवं प्रचार की आवश्यकता पर जोर देता है, ताकि यह अमर भाषा आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित और सुलभ बनी रहे।


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