भारतीय नाट्य परंपरा और अभिनयदर्पण | Bhartiya Natya parampara Aur Abhinayadarpana

By: वाचस्पति गैरोला - Vachaspati Gairola
भारतीय नाट्य परंपरा और अभिनयदर्पण | Bhartiya Natya parampara Aur Abhinayadarpana by


दो शब्द :

इस पाठ में भारतीय नाट्य परंपरा और आचार्य नन्दिकेश्वर के ग्रंथ "अभिनयदर्पण" का समग्र विवेचन किया गया है। भारतीय संस्कृति में नाट्यकला की गहराई और विविधता को दर्शाते हुए, लेखक ने नाट्यशास्त्र की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, इसके विकास और विभिन्न ग्रंथों का उल्लेख किया है। नाट्यशास्त्र के संस्थापक आचार्य भरत को विशेष रूप से रेखांकित किया गया है, जिन्होंने नाट्यवेद की स्थापना की। इस ग्रंथ में अभिनय, संगीत, और नृत्य के सभी पहलुओं का समावेश किया गया है, जो भारतीय कला और साहित्य का अभिन्न हिस्सा हैं। आचार्य नन्दिकेश्वर का "अभिनयदर्पण" इस परंपरा का महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जिसे विभिन्न भाषाओं में अनूदित किया गया है। लेखक ने विभिन्न अनुवादों का उल्लेख करते हुए उनकी उपयोगिता और महत्व पर प्रकाश डाला है। पुस्तक की संरचना को तीन भागों में विभाजित किया गया है: पहले भाग में नाट्य साहित्य और उसकी परंपरा, दूसरे भाग में नाट्य की उत्पत्ति, और तीसरे भाग में नाट्य विधि का विवरण दिया गया है। लेखक ने यह भी बताया है कि नाट्यकला केवल मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि यह समाज की चेतना और संस्कृति का दर्पण है। नाट्यकला के माध्यम से समाज के विभिन्न वर्गों को एक साथ लाने और सांस्कृतिक एकता को बढ़ाने का प्रयास किया गया है। इस पुस्तक के अंत में, नृत्य, अभिनय और विभिन्न कलात्मक शैलियों से संबंधित रेखाचित्रों और परिभाषाओं का समावेश किया गया है, जो अध्ययन के लिए सहायक सिद्ध होंगे। इस प्रकार, यह पुस्तक भारतीय नाट्य परंपरा और "अभिनयदर्पण" के महत्व को स्पष्ट करती है।


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