भारतीय दर्शन का इतिहास भाग १ | Bhartiya Darshan ka Itihas Part 1
- श्रेणी: Cultural Studies | सभ्यता और संस्कृति इतिहास / History
- लेखक: सर्वपल्ली राधाकृष्णन - Dr. Sarvpalli Radhakrishnan
- पृष्ठ : 466
- साइज: 22 MB
- वर्ष: 1978
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दो शब्द :
इस पाठ में भारतीय दर्शन की महत्ता और उसके ऐतिहासिक विकास पर चर्चा की गई है। यह बताया गया है कि भारतीय संस्कृति और दर्शन ने मानवता की सोच और ज्ञान के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारतीय दर्शन को न केवल एक वैचारिक प्रणाली के रूप में देखा गया है, बल्कि इसे एकता और विविधता के बीच संतुलन स्थापित करने वाले तत्व के रूप में भी प्रस्तुत किया गया है। पाठ में यह उल्लेख किया गया है कि भारत की एकता किसी विदेशी आक्रमण या साम्राज्य के विस्तार के कारण नहीं, बल्कि प्राचीन संस्कृति के आध्यात्मिक सिद्धांतों के परिणामस्वरूप है। भारतीय दर्शनों का अध्ययन आवश्यक बताया गया है, ताकि हम समझ सकें कि आधुनिक समस्याओं पर प्राचीन भारतीय विचारकों ने किस प्रकार से विचार किया था। इसके अलावा, यह भी कहा गया है कि भारतीय दर्शन के सिद्धांतों को समझने के लिए पाठकों को कुछ प्रारंभिक शास्त्रीय ज्ञान होना आवश्यक है। पाठ में एक समग्र दृष्टिकोण से भारतीय दार्शनिक विचारों का एक संतुलित विवेचन करने का प्रयास किया गया है, जिसमें विभिन्न दर्शन शाखाओं के सिद्धांतों और उनके आपसी संबंधों का अध्ययन किया गया है। संक्षेप में, यह पाठ भारतीय दर्शन के समृद्ध और विविध इतिहास को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण प्रेरणा स्रोत है, जो न केवल भारतीय संस्कृति की गहराई को उजागर करता है बल्कि इसे आधुनिक संदर्भों में भी प्रासंगिक बनाता है।
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