तंत्र - महाविज्ञान [ भाग २] | Tantra - Mahavigyan [ part2]

By: श्रीराम शर्मा आचार्य - Shri Ram Sharma Acharya


दो शब्द :

इस पाठ में तंत्र और शक्ति उपासना के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। लेखक ने यह बताया है कि भारतीय संस्कृति में शक्ति उपासना की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है और यह विभिन्न धार्मिक ग्रंथों, उपनिषदों, तथा पुराणों में उल्लेखित है। पाठ में यह भी बताया गया है कि भारतीय तंत्र विद्या के सिद्धांतों का अध्ययन करना आवश्यक है, क्योंकि यह न केवल आध्यात्मिक विकास में सहायक है, बल्कि समाज में व्याप्त दोषों को कम करने के लिए भी उपयोगी है। लेखक ने विभिन्न योगों का उल्लेख किया है, जैसे कि राजयोग और शान्ति योग, और इनकी विधियों के द्वारा सामान्य व्यक्ति को आत्मिक उन्नति करने की प्रेरणा दी गई है। इसके अतिरिक्त, यह बताया गया है कि भारतीय सोच में जगत तिगुणात्मक है, जिसमें सत्व, रजस और तमस गुणों का मिश्रण है। इस दृष्टिकोण से, शक्ति साधना को समझते हुए यह आवश्यक है कि व्यक्ति अपने दोषों को सीमित करते हुए उच्चतर आध्यात्मिक स्तरों की ओर बढ़े। शक्ति उपासना के प्रसार की चर्चा करते हुए, लेखक ने बताया कि यह केवल भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि यह तिब्बत, चीन, मिश्र, और अन्य देशों में भी फैली हुई है। इसके साथ ही, शक्ति साधना को विज्ञान के दृष्टिकोण से भी समझाने का प्रयास किया गया है, जिसमें वैज्ञानिक सिद्धांतों के अनुसार शक्ति का प्रयोग और उसका प्रभाव समझाया गया है। अंत में, तंत्र साधना की जटिलताओं और उसकी विधियों पर बल दिया गया है। लेखक ने यह भी कहा है कि शक्ति साधना को गंभीरता से लेना चाहिए और इसके लिए उचित मार्गदर्शन प्राप्त करना आवश्यक है ताकि साधना में लाभ के बजाय हानि न हो।


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