प्रतिज्ञा | Pratigya
- श्रेणी: उपन्यास / Upnyas-Novel बाल पुस्तकें / Children
- लेखक: मुंशी प्रेमचंद - Munshi Premchand
- पृष्ठ : 241
- साइज: 11 MB
- वर्ष: 1939
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दो शब्द :
इस पाठ में प्रेमचंद द्वारा रचित एक संवादात्मक कथा का वर्णन किया गया है जिसमें दो मित्र, प्रोफेसर दौननाथ और बाबू अ्रमृतराय, एक व्याख्यान सुनने के दौरान अपनी विचारधाराओं का आदान-प्रदान करते हैं। प्रोफेसर दौननाथ व्याख्यान को बोरियत भरा मानते हैं और खेल के लिए जाने की इच्छा व्यक्त करते हैं, जबकि अमृतराय व्याख्यान को सुनने में तल्लीन रहते हैं। अमृतराय का विचार है कि समाज में अपने कर्तव्यों का पालन करना आवश्यक है, विशेषकर महिलाओं के प्रति। वह अपने विचारों को लेकर गंभीर हैं और समाज में सुधार लाने की आवश्यकता पर बल देते हैं। दौननाथ, जो एक सरल स्वभाव के व्यक्ति हैं, अमृतराय की विचारधारा का मजाक उड़ाते हैं और मानते हैं कि अकेले व्यक्ति कुछ नहीं कर सकते, जबकि अमृतराय का मानना है कि एक व्यक्ति ही समाज में परिवर्तन ला सकता है। कथा में यह भी दर्शाया गया है कि अमृतराय ने निर्णय लिया है कि वह विवाह नहीं करेंगे, ताकि वे अपने कर्तव्य के प्रति समर्पित रह सकें, लेकिन दौननाथ उन्हें चेताते हैं कि प्रेम और विवाह केवल एक सौदा नहीं है, बल्कि एक गहरी भावना है। अंततः, अमृतराय यह सोचते हैं कि यदि उनकी प्रेमिका प्रेमा उन्हें समझेगी तो वह उनके निर्णय को स्वीकार करेगी। इस तरह, संवाद में प्रेम, कर्तव्य, और समाज में सुधार की आवश्यकता की चर्चा होती है, जो पाठक को सोचने पर मजबूर करती है कि व्यक्तिगत निर्णयों और समाजिक जिम्मेदारियों के बीच संतुलन कैसे बनाया जाए।
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