रति प्रिया | Rati Priya
- श्रेणी: उपन्यास / Upnyas-Novel साहित्य / Literature
- लेखक: श्री गोपाल आचार्य - Shri Gopal Acharya
- पृष्ठ : 166
- साइज: 2 MB
- वर्ष: 1960
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दो शब्द :
"रतिप्रिया" एक सांस्कृतिक और यौन संबंधों पर आधारित पाठ है, जो भारतीय समाज में काम-संस्कृति के इतिहास और उसके विकास को दर्शाता है। पाठ में बताया गया है कि प्राचीन भारत में यौन संबंधों को एक सामान्य और स्वीकृत विषय माना जाता था। वात्स्यायन के समय में नारी की स्थिति और यौन संबंधों की स्वीकृति का उल्लेख किया गया है। समय के साथ, विवाह का आदर्श बढ़ा और यौन संबंधों पर सामाजिक प्रतिबंध बढ़ने लगे। महाकवि कालिदास के समय में भी यौन चर्चा को असामाजिक नहीं माना गया, लेकिन बाद में यह विचारधारा बदल गई। बारहवीं शताब्दी में कोक ने 'कोकशास्त्र' की रचना की, जो विवाह के भीतर यौन संबंधों को प्रोत्साहित करता है। पाठ में विभिन्न कवियों और लेखकों द्वारा यौन संबंधों पर लिखे गए ग्रंथों का भी उल्लेख किया गया है, जो यह दर्शाते हैं कि भारतीय समाज ने कभी भी यौन संबंधों को कलात्मक और सांस्कृतिक दृष्टि से नकारा नहीं किया। आधुनिक युग में भी, "रतिप्रिया" का उद्देश्य यह है कि लोग यौन संबंधों को एक नैतिक और सकारात्मक दृष्टिकोण से देखें और जीवन में उसका आनंद लें। अंत में, यह पाठ भारतीय संस्कृतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से काम और यौन संबंधों का एक महत्वपूर्ण पक्ष प्रस्तुत करता है, जिसे समझना और स्वीकारना आवश्यक है।
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