उत्तररामचरितम | Uttarramcharitam

By: तारिणीश झा - Tarinish Jha
उत्तररामचरितम | Uttarramcharitam by


दो शब्द :

इस पाठ में नाटक (रूपक) की रचना और उसकी प्राचीनता पर चर्चा की गई है। नाट्यशास्त्र को पंचम वेद माना जाता है और इसके अस्तित्व की पुष्टि वेदों से पहले के काल से होती है। पाठ में बताया गया है कि नाटक की उत्पत्ति लोक-जीवन से जुड़ी हुई है और यह विभिन्न संस्कृतियों में विभिन्न रूपों में विकसित हुआ है। भारतीय नाट्यशास्त्र के संदर्भ में, यह कहा गया है कि नाटक का विकास सामाजिक मनोरंजन और धार्मिक अनुष्ठानों से हुआ। नाटक में संवाद, संगीत और अभिनय का समावेश होता है, जो इसे अन्य काव्य रूपों से अलग बनाता है। पाठ में नाटक की परिभाषा दी गई है और यह समझाया गया है कि नाटक एक दृश्य काव्य है जिसमें पात्रों के माध्यम से कहानी प्रस्तुत की जाती है। इसके अलावा, नाटक के विभिन्न तत्वों और भावों की चर्चा की गई है, जैसे कि रस, भाव, और अभिनय। अभिनय को नाटक का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना गया है, जो इसे जीवंत और प्रभावशाली बनाता है। नाटक का उद्देश्य दर्शकों को मनोरंजन प्रदान करना और विभिन्न भावनाओं का अनुभव कराना है। अंत में, पाठ में कहा गया है कि भारतीय नाटकों में सुखद अंत की परंपरा है, जबकि पश्चिमी नाटकों में दुखद अंत को अधिक महत्व दिया जाता है। इस प्रकार, नाट्यशास्त्र का यह अध्ययन नाटक की कला और उसकी सांस्कृतिक महत्ता को उजागर करता है।


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